यह साहित्य के धुंधलाए दर्पण को साफ करने का समय है- हरिशंकर आचार्य

बीकानेर, 23 जून। सोमवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद की महानगर इकाई द्वारा ‘मासिक पुस्तक चर्चा’ की तीसरी कड़ी का आयोजन किया गया। ईएनटी हॉस्पिटल के पास बने ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम में वैद्य विद्यासागर पंचारिया की रचनाओं पर चर्चा की गई। इस दौरान उनकी 2 पुस्तकों ‘कविताएं मेरे मन की मीत’ और ‘काव्य मंजरी’ पर शहर के साहित्यकारों और प्रबुद्धजनों ने अपने विचार साझा किये।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लेखिका संगीता सेठी ने कहा कि “साहित्य भीतर से बाहर निकलने की यात्रा है, जिसमें कविता पहला पड़ाव होती है। वैद्य विद्यासागर की रचनाएं भी इसी पड़ाव का उदाहरण है। उनकी कविताओं में गहरी संवेदनाएं हैं।”

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, लेखक और उपनिदेशक, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग हरिशंकर आचार्य ने कहा कि “आज तकनीक और सूचना के अतिरेक के चलते साहित्य का दर्पण धुंधला हो गया है। अब समय है कि इसे साफ करके समाज को फिर से एक ईमानदार छवि दिखाई जाए। पंचारिया जी की रचनाएँ इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रही हैं। उनकी कविताओं की सपाटबयानी और प्रयोगधर्मिता साफ झलकती है।” आचार्य ने उनकी पुस्तक से कुछ चुनिंदा कविताएं सुनाकर अपनी बात को सत्यापित भी किया।

लेखक वैद्य विद्यासागर पंचारिया ने कहा, “आज तक हम सुनते आये हैं कि साहित्य वह होता है, जिसमें समाज का हित निहित होता है, लेकिन मुझे लगता है कि साहित्य में सबसे ज्यादा हित ख़ुद साहित्यकार का ही निहित होता है। कम से कम मेरे लिये तो ऐसा ही है। मेरे लिये लिखना-पढ़ना जीवन को आनंद के साथ जीने का जरिया बन चुका है। मैं मेरी साहित्यिक यात्रा में अब तक सैंकड़ों किताबें पढ़ चुका हूं, 22 किताबें लिख चुका हूं। मेरी किताबें किसी हौड़-दौड़ का हिस्सा नहीं हो सकती। मैं मेरे लिये और समाज के लिये साहित्य सृजन करता हूं। मेरे लेखन-पठन की यह यात्रा आगे भी जारी रहेगी।”

युवा पत्रकार सुमित शर्मा ने लेखक विद्यासागर का परिचय देते हुए कहा कि “शब्दों में बहुत ताक़त होती है। कई बार वे किसी के लिये संजीवनी तक का काम भी कर देते हैं। वैद्य जी के जीवन में शब्दों ने, साहित्य ने यही भूमिका निभाई है।” इसके बाद पंचारिया की पुस्तक ‘कविताएं- मेरे मन की मीत’ पर शिक्षिका सुनीता सेवग द्वारा लिखित पत्र का वाचन कहानीकार आशा शर्मा ने किया, वहीं दूसरी पुस्तक ‘काव्य मंजरी’ पर कवयित्री मोनिका गौड़ ने अपने समीक्षात्मक विचार साझा किए। विशिष्ट अतिथि करण सिंह बेनीवाल, प्रांत उपाध्यक्ष ने संगठन की भूमिका और साहित्यिक गतिविधियों की जानकारी साझा की।

कार्यक्रम की शुरुआत ज्योतिवधवा रंजना द्वारा सरस्वती वंदना के साथ की गई। डॉ. अखिलानंद पाठक, अध्यक्ष, अखिल भारतीय साहित्य परिषद (जोधपुर प्रांत) ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि “पाठक-पीठिका.. परिषद का एक ऐसा प्रयास है, जो स्वस्थ साहित्यिक वातावरण को पोषित करता है।” कार्यक्रम के आखिर में के.के. शर्मा ने कार्यक्रम में आए लोगों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन मोनिका गौड़ ने किया।

पाठक-पीठिका की इस तीसरी कड़ी में बीकानेर के अलग-अलग क्षेत्रों के गणमान्य लोगों ने हिस्सा लिया। जिनमें विख्यात व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा, विनोद ओझा, गिरिराज पारीक, गोविंद जोशी, एडवोकेट गंगाबिशन विश्नोई, मुनींद्र अग्निहोत्री, महेंद्र जोशी, गोपाल द्वास व्यास, अभय सिंह टाक, भगवती प्रसाद पंचारिया, बजरंग पंचारिया, महावीर जोशी, संदीप पंचारिया, मंजू, शैलेश शर्मा समेत कई गणमान्यजन और साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।

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