मेरी बात : कबीर यात्रा निकालिए, कबीर विचार की ‘अंतिम यात्रा’ नहीं

15वीं शताब्दी में एक सूफी कवि हुये- कबीर। वे औपचारिक रूप से तो पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन जीवन के अनुभवों ने उन्हें ऐसा संवारा कि संत बना दिया। उनकी वाणी में गहरा आध्यात्मिक ज्ञान था। कालांतर में, यही ज्ञान ‘दोहों’ के रूप में जनमानस के अंतस में उतरा। कबीर की वाणी और उनकी सत्संग परंपरा गांव-गांव, ढाणी-ढाणी तक पहुंचे, इसी उद्देश्य से बीकानेर की लोकायन संस्थान ने ‘राजस्थान कबीर यात्रा’ की शुरुआत की। संगीत की वह यात्रा, जिसमें ग्रामीण परिवेश में.. देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोक गायकों और संगीत रसिकों का कारवां साथ-साथ चलता है।

“सुमित ! हम चाहते हैं कि बीकानेर की धरोहर और कलाओं का संरक्षण-संवर्धन हो। लोकायन संस्थान इसी दिशा में काम करता है। राजस्थान कबीर यात्रा भी इसी तरह का एक सच्चा प्रयास है।” ऐसा कहना था- लोक कला मर्मज्ञ, इतिहासकार कृष्ण चंद्र शर्मा का। जिनसे साल 2012 में एक डॉक्यूमेंट्री के सिलसिले में मेरी मुलाक़ात हुई थी। सफेद झक्क बाल, आंखों पर नज़र का काला चश्मा और मठा’र कर बोलने का अंदाज। वे कृष्ण चंद्र शर्मा ही थे, जिन्होंने साल 1996 में ही लोकायन संस्थान की स्थापना की थी।

साल 2012 में लोकायन ने बीकानेर से पहली राजस्थान कबीर यात्रा निकाली। जिसमें साथ दिया- एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस ने। संगीत का सफर शुरु हुआ ही था कि मीडिया हाउस के साथ किसी बात को लेकर पहली ही ‘कबीर यात्रा’ विवादों की भेंट चढ़ गई। तब लोकायन से जुड़े गोपाल सिंह पर आरोप लगे थे। थू-थू भी हुई लेकिन कबीर की कृपा रही कि आयोजन की लाज बच गई। फिर प्रह्लाद टिपानिया, शिवजी-बद्री सुथार और पार्वती बाउल जैसे कलाकारों की उम्दा प्रस्तुतियों ने क्राइसिस मैनेजमेंट का काम किया। लोकायन की कोशिशें रंग लाईं। आयोजन लगभग सफल रहा। तब श्रीलाल मोहता ने टीम की हौसलाअफजाई करते हुए एसपी मेडिकल कॉलेज के मंच से कहा था कि “टीम लोकायन और छोटे कद के गोपाल ने बड़े प्रयास किये हैं। सबको बधाई।”

साल 2012 के बाद राजस्थान कबीर यात्रा अपनी वेबसाइट के होमपेज पर चस्पा बस की तरह हिचकोले खाने लगी। साल 2013 से 2015 तक एक भी कबीर यात्रा न हो सकी। 2016 में राजस्थान पुलिस और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अमनदीप सिंह कपूर का साथ मिला तो यह आयोजन फिर से होने लगा। इसके बाद साल-दर-साल कबीर यात्रा का रंग-रूप, दिखावट-सजावट समेत तमाम चीजें बदलने लगीं। हालांकि इन सबके पीछे पूरी टीम के अपने-अपने हिस्से की मेहनत थी, मगर दीगर है कि कबीर यात्रा के चेहरे के तौर पर सिर्फ गोपाल सिंह का नाम ही स्थापित हुआ। अगले कुछ एडिशंस में तो ज़िला प्रशासन भी इस आयोजन का हिस्सा बनने लगा। इस तरह यात्रा को कभी राजस्थान पुलिस तो कभी प्रशासन का साथ मिला। जिसका आयोजकों को भरपूर फायदा भी मिला। मान-सम्मान, काम-इंतजाम.. सब। इस तरह कुछ ही सालों में कबीर यात्रा का नाम संगीत के उम्दा समारोहों में शुमार हो गया।

साल 2022 में लोकायन के संस्थापक कृष्ण चंद्र शर्मा का निधन हो गया। साल 2023 में भी कबीर यात्रा का आयोजन न हो सका। 2024 में इसका 7वां एडिशन मुकर्रर हुआ। तब आयोजकों में लोकायन के अलावा एक और नाम जुड़ा- मलंग फोक फाउंडेशन। ऐसा होने के साथ ही भीतरखाने से विरोध के सुर उठने लगे। साल 2025 आते-आते ये सुर और तेज़ होने लगे। इस बार कबीर यात्रा 1 अक्टूबर से 5 अक्टूबर तक होनी है। लेकिन इससे ठीक 4 दिन पहले इसके आयोजकों पर आरोपों की झड़ी लग गई। यहां तक कि मामला कोर्ट तक जा पहुंचा।

लोकायन संस्था के चन्द्र कुमार और रोहित बोड़ा ने बताया कि- वाद में संस्थान के कोषाध्यक्ष और कार्यकारिणी सदस्य द्वारा सचिव गोपाल सिंह चौहान और अध्यक्ष महावीर स्वामी समेत अन्य पर आरोप लगाये गये हैं। जिसमें, आपसी मिलीभगत द्वारा गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, कूटरचित दस्तावेज़ों से चुनाव करवाने का जिक्र है। आरोप यह भी सचिव गोपाल सिंह अपने वित्तीय लाभ के लिए लोकायन को ‘राजस्थान कबीर यात्रा’ से दरकिनार कर अपने ‘मलंग फोक फाउंडेशन’ द्वारा अनाधिकृत रुप से आयोजित करवाने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, लोकायन में वित्तीय पारदर्शिता, नैतिकता और लोक कलाकारों को उचित रॉयल्टी देने को लेकर सवाल उठ रहे थे। गोपाल इन सवालों से बचने की कोशिश कर रहे थे। उनका यह भी कहना था कि “ये नाक की नहीं, न्याय की लड़ाई है। हम कतई नहीं चाहते कि इसमें लोक संगीत और संगीत प्रेमियों का रत्तीभर भी नुक़सान हो। हमारी प्रमुख मांग यही है कि राजस्थान कबीर यात्रा के आयोजकों में लोकायन संस्थान का नाम भी जुड़ा रहे।”

सोमवार को ज़िला न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई हुई तो न्यायसंगत फैसला आया। जिला न्यायाधीश अतुल कुमार सक्सेना ने निर्णय सुनाया कि कबीर यात्रा अब लोकायन और मलंग फोक फाउंडेशन के संयुक्त आयोजन में ही आयोजित की जाएगी। इस आदेश पर दोनों पक्षों की सहमति बन गई। वाद में दायर अन्य बिंदुओं पर सुनवाई अब 30 अक्टूबर को होगी।

कुल मिलाकर पहले विवाद, फिर वाद और आख़िर में कोर्ट के साथ संवाद। 3 दिनों के 3 रंग। लगा जैसे- संगीत की यह सुंदर यात्रा हक़ और वर्चस्व के कोलाहल में तब्दील हो गई हो। भले ही ये लड़ाई ‘लोकायन संस्थान’ बनाम ‘मलंग फोक फाउंडेशन’ की थी, लेकिन इसका थोड़ा-थोड़ा खमियाजा सबको भुगतना पड़ा। सबसे ज्यादा नुकसान कबीर प्रेमियों और संगीत रसिकों का हुआ। फिर राजस्थान पुलिस, बीकानेर ज़िला प्रशासन और इसके मंच पर नज़र आने वाले नेताओं और मंत्रियों का भी। राजस्थान, बीकानेर और ख़ुद संत कबीर के नाम का नुक़सान तो होता ही जा रहा है। आगे भी होता रहेगा, जब तक यह मामला चलेगा।

उपरोक्त प्रकरण के बाद चर्चाएं हैं कि संत-वाणी की परंपराओं को फैलाने का दावा करने वाले लोग ‘कबीर’ के नाम के लिये झगड़ रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि कबीर की वाणी और ‘कबीर’ यात्रा के आयोजकों के विचारों में इतना विरोधाभास क्यों है? कबीरदास के दोहों में तो ऐसी सीख कहीं नहीं है। कबीर तो कहते थे कि-

लोभी सदा दुखी रहा, जो चाहा सो ना होय। 
धन के पाछे फिरत है, भवसागर में खोय।।

फिर क्यों ‘कबीर’ यात्रा के आयोजकों पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के सवाल उठ रहे हैं?

संत कबीर तो चेताते हुए कहते थे कि-

माया को लुटि लई, माया गई सताय।
कहत कबीर चेत रे, अब क्यों पछिताय॥

फिर क्यों आयोजकों पर बिना अनुमोदन और अनुशंसा के.. अनाधिकृत रूप से कबीर यात्रा आयोजित करवाने के आरोप लग रहे हैं?

कवि कबीर ये कहते-कहते रुखसत हो गये कि-

अहंकार से कोई न बचे, चाहे हो गुणवान।
कह कबीर यह जानिये, घमंड करे नुकसान।।

फिर क्यों आयोजकों पर एकतरफा और मनमर्जी से निर्णय लेने के आरोप लग रहे हैं?

सवाल यह भी कि- क्या 1 दशक से कबीर यात्रा निकालने वालों के हृदय में थोड़ी मात्रा में भी कबीर के विचार नहीं उतरे? ..और अगर उतरे हैं तो उन्हें उपरोक्त सवालों पर मंथन ज़रूर करना चाहिये। उन्हें कुछ ऐसा करना चाहिये, जिससे संत कबीर, लोक संगीत, सत्संग रसिकों और बीकानेर के हुये नुक़सान की भरपाई हो सके। उन्हें नहीं भूलना चाहिये कि इस आयोजन में बीकानेर ज़िला प्रशासन, राजस्थान पुलिस, अमनदीप सिंह कपूर और देश के क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल जैसे नाम भी जुड़ते आये हैं। समाज में इन सबकी अपनी-अपनी साख और जिम्मेदारियां हैं। इससे उनके लिये अच्छा संदेश नहीं जायेगा। आयोजकों को ‘कबीर यात्रा’ निकालनी चाहिये, ‘कबीर-विचार’ की ऐसी ‘अंतिम यात्रा’ कतई नहीं। पहली कबीर यात्रा (2012) से लेकर अब तक (2025) यह यात्रा भीतरी-बाहरी विवादों से घिरती रही है। अब आयोजकों को विवादों से पीछा छुड़ाने और संवादों से जुड़ने की ज़रुरत है। कबीर का नाम पाने के लिये.. मलंग बनाम लोकायन का समर नहीं रचा जाना चाहिये। बल्कि वाकई ‘मलंग’ (बेफिक्र, मस्त) होकर ‘लोकायन’ (लोगों से संगीत रूपी संवाद/यात्रा) करना चाहिये। धन, लोभ, मद और नाम के मोह जैसी सीमाओं को तोड़ना ही तो असली कबीर होना है।   

हद हद टपे सो औलिया, बेहद टपे सो पीर
हद अनहद दोउ टपे सो वाको नाम फ़कीर
कबीरा, सो वाको नाम फ़कीर !

और ऐसा ‘असली कबीर’ होकर ही असली ‘कबीर यात्रा’ निकाली जा सकती है। मोह-माया में फंसने वाले का हृदय कभी शांत नहीं होता। असली मलंग बनकर, माया को त्यागकर ही ईश्वर को पाया जा सकता है। जैसा कि कबीर संदेश भी देते थे कि-

जाका माया मोह में, ताका हिय न अधीर।
कह कबीर तजि माया, पावै राम सरीर॥

बहरहाल.. जाते-जाते पहली ‘राजस्थान कबीर यात्रा’ में शबनम विरमानी का गाया गीत ख़ूब याद आ रहा है। कबीर यात्रा के ऑफिसियल यूट्यूब चैनल पर ढूंढने की कोशिश की, मगर मिला नहीं। इसका कारण पता किया तो फिर एक विवाद की बात सामने आई- चैनल की कमाई में लोक कलाकारों की रायल्टी पर विवाद। उफ्फ… ! चलिये, मैं उस गीत के बोल ही चस्पा करके विदा लेता हूं। कबीर यात्रा के सफल आयोजन (साफ-स्वच्छ और विवादरहित) की शुभकामनाओं के साथ।

मत कर माया को अहंकार
मत कर काया को अभिमान
काया गार से काची
काया धूल हो जासी
ओ काया तेरी धूल हो जासी…

NOTE- इस लेख पर अपनी राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।

7 thoughts on “मेरी बात : कबीर यात्रा निकालिए, कबीर विचार की ‘अंतिम यात्रा’ नहीं

  1. बहुत बहुत बधाई भाई सुमित जी, आपने संगीत, कलाकार, उत्सव आयोजन और उससे जुड़े हम जैसे सभी आमजन के लिए एक विचारणीय और विचारोत्तेजक आलेख राजस्थान कबीर यात्रा के वर्तमान संदर्भ में लिखा है।
    किसी भी संगीत उत्सव का आयोजन करना एक बहुत बड़ी टीम भावना,सामूहिक साधना एवं कलाकारों के विश्वास अर्जित करने से संभव होता है।यह विश्वास तब अर्जित होता है जब आयोजक लंबे समय तक कलाकारों और उनसे जुड़ी परम्पराओं को समझे और १००% शुचिता और पारदर्शिता से टीम और कलाकारों के साथ काम करे। आयोजक प्रयास करें कि उनका हर निर्णय और काम कलाकारों के हित में हो। आयोजक किसी भी उत्सव का आयोजन सिर्फ कलाकारों और उनकी कलाओं के बढ़ाने के लिये करें और स्वयं नेपथ्य में रखें।
    मैं दुआ करता हूँ राजस्थान कबीर यात्रा उत्सव की टीम हिलमिल कर इस शानदार आयोजन को निरंतर जारी रखें। मेरी अनंत शुभकामनाएँ इसके सफल आयोजन के लिए सदैव टीम के साथ है।

    1. आपने बहुत गहरी बात कही है। इस गहराई के पीछे आपकी कला साधना और कला के प्रति पवित्र प्रेम है। जिसे आपने मोमासर उत्सव सरीखे कार्यक्रम कर-करके अर्जित किया है। काश ! दूसरे आयोजक भी आपसे प्रेरणा लें।

  2. Kabeer ek kaljeyi sant the. Ve jivan jine ki kala ke marmagya the. Unke jivan se prerana lekar jine me hi jivan ki sarthakta hai. En binduon ko samahit karate hue yah lekh bahut hi sargarbhit hai. Kabeer ke vicharon ko sankshipt me samajhane ke liye yah lekh upyogi siddh hoga, esa mera manana hai.
    Sumit Ji, aapko es siddh lekhan ke liye badhai!

  3. शानदार आलेख ,सुमित बाबू
    गागर में सागर भर कर सच्चाई सामने ला दी है आपने, उत्कृष्ट लेखन के लिए बहुत बहुत साधुवाद 🙏

  4. आपने बहुत गहरी बात कही है। इस गहराई के पीछे आपकी कला साधना और कला के प्रति पवित्र प्रेम है।

  5. प्रिय सुमित,
    कबीर के नाम पर यात्रा निकालना या उनकी बातें करना आसान है किंतु मन, वचन और कर्म उनके जैसा बनना बहुत कठिन है।
    कबीर यात्रा की सुखद शुरुआत, कुछ वर्षों बाद अब विवाद…। न शुभ संकेत हैं, न शुभ संदेश।
    अच्छा लिखा है आपने क्रांतिचेता संत कवि कबीर और बीकानेर की कबीर यात्रा पर।
    असीम बधाइयां।

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