विमर्श : अनुदान गबन मामले में किसकी साख जाएगी, किसकी बचेगी?

सच्चियाय गो सेवा समिति मण्डल गोगडियावाला में अनुदान गबन की शिकायत, जांच और जांच रिपोर्ट को अमान्य कर नये सिरे से जांच के आदेश प्रशासन की कार्यशैली और निर्णयों पर सवाल खड़ा करता है। उपखण्ड अधिकारी की अध्यक्षता में तहसीलदार, पशु पालन अधिकारी की कमेटी की जांच को अगर कलक्टर नहीं मानती है तो इस प्रशासनिक व्यवस्था पर बड़ा सवाल है। क्या अधिकारियों की जांच कमेटियों की इतनी भी विश्वसनीयता नहीं है कि उनके उच्च अधिकारियों को भी भरोसा हो। तब तो जनता का यह अविश्वास सच है कि जांच के नाम पर अधिकारी लीपा पोती करते हैं। कलेक्टर का अपने अधीनस्थों के खिलाफ दुबारा जांच का यह निर्णय प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोलता है। एसडीएम का पद जिम्मेदारी का पद होता है। तहसीलदार का भी कम जिम्मेदारी वाला नहीं होता। फिर कलेक्टर किस पर विश्वास करेंगी? यह निर्णय दरअसल जिला कलेक्टर की प्रशासनिक कुशलता पर भी सवाल है। जिला गोपालन समिति की अध्यक्ष जिला कलेक्टर, समिति में संयुक्त निदेशक पशुपालन एवं संयुक्त निदेशक कृषि अब 20 जून को क्या सच निकालकर लाते हैं? ये देखने वाली बात होगी। देवी सिंह भाटी द्वारा मुख्यमंत्री और कलेक्टर समेत अन्यों को पत्र लिखने से यह मुद्दा राजनीतिक भी बन गया है। इसमें एसडीएम की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट गलत होने पर कमेटी से जुड़े अधिकारियों पर झूठी या राजनीतिक दबाव से रिपोर्ट देने का आरोप लगेगा। कलेक्टर की तरफ से एसडीएम की रिपोर्ट को अमान्य कर फिर से जांच में अगर इतर रिपोर्ट आती है तो नये सवाल खड़े होंगे।

अब सवाल यह उठता है कि क्या सच्चियाय गो सेवा समिति मण्डल गोगडियावाला में अनुदान गबन की शिकायत, जांच और जांच रिपोर्ट को अमान्य कर नये सिरे से जांच के आदेश देना राजनीतिक दबाव या राजनीति से प्रेरित है? जिला कलेक्टर के जांच रिपोर्ट पर नए सिरे से 20 जून को जांच के आदेश में पता चलेगा कि एसडीएम सही है या कलेक्टर का आदेश या फिर देवी सिंह भाटी द्वारा उठाये गये सवाल। कुल मिलाकर अब यह मुद्दा एसडीएम की अध्यक्षता में बनी कमेटी, जिला गोपालन समिति की अध्यक्ष एवं कलक्टर और भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी के साख का सवाल बन गया है।

आपको बता दें कि गौशालाओं को प्रति गौधन पर दिये जाने वाले अनुदान में भ्रष्टाचार की शिकायतें नयी नहीं है। अनुदान में सरकारी अधिकारियों और छुट्टभईया नेताओं की मिलीभगत की शिकायतें भी हैं। कई मामलों में जांच के दौरान ऐसी शिकायतें सही भी पाई गईं। सभी गौशालाएं अनुदान उठाने में भ्रष्टाचार करती हैं, यह बात भी पूरी तरह सही नहीं है। राज्य सरकार चाहे तो यह भ्रष्टाचार आसानी से रुक सकता है। इसमें प्रत्येक गौशालाओं में गो आधारिता उद्यमिता विकास की शर्त के साथ अनुदान दें तो भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो सकेगी।

बहरहाल, उपखड अधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति ने जिला गोपालन समिति अध्यक्ष और जिला कलेक्टर को रिपोर्ट दी थी की गौशाला में जांच के दौरान मौके पर 120 गोधन के स्थान पर गोधन की संख्या सिर्फ 10 थी। संयुक्त निदेशक पशु पालन कुलदीप चौधरी ने बताया कि उन्हें भी यह रिपोर्ट मिली है। इससे पहले दो बार अनुदान के लिए किए गए संयुक्त निरीक्षण की रिपोर्ट में गोधन की संख्या पूरी बताई गई। नये जांच आदेश पर भाटी के उठाए सवाल भी अहम हैं। इसका दूसरा लॉजिक यह भी है कि गौशाला के गोधन टैग्ड हैं, उनका पूरा रिकॉर्ड रहता है। टैग हटाए नहीं जा सकते। ऐसे में इस मामले में निष्पक्ष जांच होने पर दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा।



One thought on “विमर्श : अनुदान गबन मामले में किसकी साख जाएगी, किसकी बचेगी?

  1. पता नहीं कब तक गौ माता के नाम पर धर्म के ठेकेदार राजनीतिक लाभ उठाते रहेंगे,,,, भ्राता श्री आप जैसे निष्पक्ष पत्रकारों का होना समाज में होना अत्यंत आवश्यक है जो अपनी निष्पक्ष राय समाज के समक्ष रखते हैं

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