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विमर्श : आंदोलनों के इन मुद्दों पर मंत्री-सरकार चुप क्यों..?

लोकतंत्र में धरना-प्रदर्शन, रैली-अनशन, महापड़ाव क्यों किए जाते हैं? देवीसिंह भाटी ने गोचर की भूमि ई-बस डिपो को आवंटित होने पर अपनी ही पार्टी की सरकार के ख़िलाफ़ अनशन की चेतावनी दे रखी है। विकास मंच और नोखा नगर पालिका बोर्ड ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम शुरू करने में प्रशासन से मांगें सहयोग नहीं मिलने पर 16 अक्टूबर से अनशन का नोटिस दिया है। खेजड़ी के मुद्दे पर लम्बे समय से चल रहे धरने और अनशन के बाद अब धरनार्थियों ने 21 अक्टूबर से महापड़ाव का निर्णय किया है। दीपावली का त्योहार नज़दीक है। त्योहार के मौसम में ये स्थितियां क्यों बन रही हैं? क्या शासन और प्रशासन सोया हुआ है? जैसा कि स्वामी विमर्शानंद जी ने जिला कलेक्टर, केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राजस्थान सरकार के मंत्री सुमित गोदारा को शिष्ट मंडल के रूप में भेंटकर अवगत करवाया था कि “खेजड़ी काटने का दर्द व्यक्ति, जाति विशेष का नहीं है। यह सर्व समाज की भावना से जुड़ा है। खेजड़ी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय मुद्दा है।” इसी तरह गोचर भी सार्वजनिक मुद्दा नहीं है क्या? सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट भी जन स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा ही तो है। यह बात केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और राजस्थान के मंत्री सुमित गोदारा बखूबी समझते हैं। प्रशासन और सरकार में बैठे लोग भी वाकिफ होने ही चाहिए। फिर गोचर आवंटन, खेजड़ी की अवैध कटाई और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के मुद्दे पर सभी चुप क्यों है? यह गंभीर सवाल है।

आन्दोलन अपने हितों के खातिर और जनहित की खातिर होते हैं। व्यापक जनहित में होने वाले आन्दोलनों के पीछे सर्व जनहिताय की भावना रहती है। कमर्चारी अपने हितों की पूर्ति के लिए आन्दोलन करते हैं। कई आन्दोलन न्याय पाने के लिए भी किए जाते है। पानी, बिजली की आपूर्ति की मांग को लेकर पर धरने प्रदर्शन होते रहे हैं। इन सबसे अलग गोचर संरक्षण का मुद्दा हो या हरिण के शिकार की रोकथाम, पेड़ों की कटाई रोकने, सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के खातिर खेजड़ी की अवैध कटाई के आन्दोलन के पीछे निहित उद्देश्य पेड़ पौधे, जीव-जन्तुओं की संरक्षा करना है। यह सर्व जनहिताय है। क्या यह सही नहीं है कि इस आन्दोलन का उद्देश्य प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए खेजड़ी की अवैध कटाई रोकना है?

प्रशासन, सत्तारूढ़ जनप्रतिनिधि, मंत्री और सरकार को जनता के इन आन्दोलनों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। मुद्दों का सर्व जन हिताय तत्परता से निस्तारण करने की जरुरत है। अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार और प्रशासन की जनता में छवि बिगड़ती है। इसके दूरगामी परिणाम भुगतने पड़ते हैं। जो नेता जनहित के मुद्दों पर चुप्पी साधे रहते हैं, जनता उन्हें किस नजरिए से देखती होगी ? यही बात जिम्मेदार अफसरों और सरकार पर लागू होती है। जनता में उनकी छवि कुशल प्रशासक और जन प्रिय सरकार की नहीं बनती। अगर मुद्दे जन हित के हैं तो प्रशासन, मंत्री और सरकार को तत्काल सर्व जनहिताय निर्णय करने चाहिए। अन्यथा प्रशासन, मंत्री और सरकार पर ये आन्दोलन गंभीर सवाल बनता जा रहा है। लोकतंत्र में जवाब तो देना ही पड़ता है। और देना ही चाहिये। आंदोलनों के इन मुद्दों पर मंत्री-सरकार की इतनी चुप्पी ठीक नहीं है।

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