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तालिबान ने अफग़ानिस्तान में जो तबाही मचाई, उसे पूरी दुनिया ने देखा. अफग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद सबसे पहले अफग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अब्दुल गनी यहां से फारिग हो गए. उसके बाद अफगानिस्तान से बाहर निकलने वाले लोगों की तसवीरें किसी से छिपी नहीं है. क्या महिलाएं, क्या बच्चे और क्या ही आदमी. तालिबान के लड़ाके ने उन पर जो क़हर ढाया, वो लफ़्ज़ों में बयां नहीं किया जा सकता. बस ! यही वजह रही कि पूरी दुनिया तालिबान से नफरत करने लगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस TALIBAN से पूरी दुनिया नफरत करती है, उसकी मदद के लिए चीन ने अपने ख़ज़ाने ही लुटा दिये. चीन ने तालिबान की मदद के लिए एक-दो नहीं पूरे 310 लाख डॉलर दे रहा है. अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनते ही 24 घंटे के भीतर चीन ने बुधवार को 310 लाख अमेरिकी डॉलर की मदद का ऐलान कर दिया। बकौल चीन, यह अराजकता खत्म करने और व्यवस्था बहाल करने के लिए जरूरी है। इस मदद के तहत चीन तालिबान को अनाज, सर्दी के सामान, कोरोना के टीके और जरूरत की दवाएं भी मुहैया करवाएगा। आपको बता दें कि पाकिस्तान की अध्यक्षता में हुई बैठक में ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने शिरकत की। लेकिन इतनी बड़ी मदद के लिए सिर्फ और सिर्फ चीन ही आगे आया है. अब सवाल यह उठता है कि जिस तालिबान को दुनिया देखना भी नहीं चाहती, उस तालिबान के लिए आख़िर चीन क्यों मददगार बन रहा है? आख़िर चालाक चीन की इसमें क्या चालाकिया हैं, यह वक़्त आने पर ही पता चल पाएगा.
कभी लालबत्ती में घूमा करते थे, आज साइकिल पर जाना पड़ता है । कभी चारों तरफ सिक्योरिटी रहती थी, अब घर-घर जाकर पिज़्ज़ा बेचना पड़ता है । जी हां, हम बात कर रहे हैं एक ऐसे मंत्री की जो आज पिज़्ज़ा बेचने को मजबूर हो गए हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कौनसा मंत्री है तो आपको बता दें कि उस मंत्री का नाम है- सैयद अहमद शाह सआदत. जो कि अफगानिस्तान सरकार में संचार मंत्री रह चुके हैं. आप यह भी सोच रहे होंगे कि आख़िर वो क्या वजहें थीं जिसके चलते उनकी ऐसी हालत हो गई. आइये, आपको तफसील से पूरा माजरा समझाते हैं. ख़बरों के मुताबिक सआदत अफगानिस्तान में संचार से संबंधित मुद्दों पर मदद करने के लिए गए थे लेकिन अशरफ गनी के साथ मतभेदों के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद वो बीते साल जर्मनी आ गए । जर्मनी में कुछ दिनों बाद जब उनके पैसे ख़त्म हो गए तो वो लिपज़िंग शहर में फूड डिलिवरी बॅाय की नौकरी करने लगे. अब घर-घर जाकर खाना पहुंचाने से उन्हें जो पैसे मिलते हैं, वो इसी से अपना घर चलाते हैं। सआदत का कहना है "मैंने कई जगह नौकरियों के लिए आवेदन किया था लेकिन कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला। जिसके बाद मैंने फूड डिलीवरी ब्वॉय की नौकरी करनी शुरु कर दी. मै आज जर्मनी में सुरक्षित महसूस कर रहा हूं और अपने परिवार के साथ बहुत खुश हूं। अब मेरा सपना टेलीकॅाम कंपनी में काम करने का है." लोगों ने जब उनसे अफगानिस्तान के मौजूदा हालातों पर सवाल पूछा तो उन्होंने किसी भी तरह का बयान देने से इनकार कर दिया।
एक तरफ महाशक्ति अमेरिका के तीन लाख सैनिक..वहीं दूसरी तरफ तालिबान के 75 हजार सैनिक. लेकिन हैरान करने वाली बात है कि तालिबान की 75 हजार सैनिकों की टुकड़ी, महाशक्ति अमेरिका के 3 लाख सैनिकों पर भारी पड़ गई. और अफगानिस्तान 20 साल बाद एक बार फिर तालिबान के शिकंजे में आ गया. राजधानी काबुल में तालिबान के आतंकवादी दाखिल हो चुके हैं. चारों तरफ दहशत का माहौल है. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उपराष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह देश छोड़कर भाग चुके हैं. हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर तालिबान ने अफगानिस्तान पर इतनी तेजी से कब्जा कैसे किया ? आइये, आपको वो 5 वजहों से रूबरू करवाते हैं, जो अगर न होती तो तालिबान, कभी अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर पाता. पहली वजह- अफगानिस्तान के सैनिकों की संख्या अधिकारिक तौर पर अफगानिस्तान की सेना में कुल जवानों की संख्या लगभग 3 लाख है, जबकि सच ये है कि इनमें से हजारों सैनिक केवल कागजों पर मौजूद हैं. इनके नाम पर मिलने वाला वेतन और दूसरी सुविधाएं बड़े कमांडिंग ऑफिसर्स भ्रष्टाचार के रूप में लूट लेते हैं. इस तरह के सैनिकों को घोस्ट सोल्जर्स कहा जाता है. वहीं दूसरी तरफ तालिबान के पास भले ही 75000 सैनिक हों लेकिन इनको जबदस्त ट्रेनिंग दी गई थी. बिजली चमकने की तेजी के साथ ये आगे बढ़ते गए और अफगानी सैनिक पीछे होते गए. क्योंकि तालिबानी सैनिकों में शासन हासिल करने की ललक थी तो वहीं अफगानिस्तानी सैनिकों में तालिबानियों का भय. दूसरी वजह- भ्रष्टाचार और डरपोक नेतृत्व तालिबान की जीत की दूसरी बड़ी वजह सरकारी भ्रष्टाचार और अक्षम नेतृत्व को बताया जा रहा है. जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान में स्थानीय पुलिस से लेकर सेना में भयानक भ्रष्टाचार था. यहां तक कि सरकार समर्थक मिलिशिया बलों की भर्ती को अफगान अफसरों ने कमाई का जरिया बना लिया. तीसरी वजह- विद्रोह नहीं होना तालिबान ने पिछले एक महीने में एक-एक करके अफगानिस्तान के ज्यादातर प्रांतों पर कब्जा कर लिया, और कब्जे की इस लड़ाई में उसके खिलाफ कोई विद्रोह नहीं हुआ. न तो सेना की तरफ से संघर्ष हुआ, न स्थानीय स्तर पर सुरक्षा बल ने लड़ाई लड़ी और न ही वहां के लोगों ने तालिबान के आंतकवादियों का विरोध किया. इसकी सबसे बड़ी वजह है तालिबान का डर. जबकि बड़ी बात ये है कि तालिबान के आतंकवादियों के पास इस समय ना तो आधुनिक हथियार हैं और ना ही ज्यादा पैसा है. चौथी वजह- तालिबान की रणनीति तालिबान के पास अपनी वायु सेना नहीं है, जबकि अफगानिस्तान के पास अपनी वायु सेना है. जिसे देखते हुए तालिबान ने वहां के पायलटों को मारने के लिए एक टॉरगेट ऑपरेशन शुरू किया था, जिसका मकसद था, वायु सेना के पायलटों को मार देना ताकि कब्जे की लड़ाई के दौरान अफगानिस्तान वायु सेना का इस्तेमाल नहीं कर सके. इस तरह जब तालिबान के खिलाफ वायु सेना के इस्तेमाल की बात उठी तो मारे जाने के डर से कई पायलटों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. तालिबान की यही रणनीति उनकी जीत की एक बड़ी वजह बन गई पांचवीं वजह- अफगानी नेता भी जिम्मेदार अफगानिस्तान की ऐसी हालत के लिए अफगानी नेता भी जिम्मेदार हैं. जिन्होंने तालिबान से समझौता करके अफगानिस्तान का भविष्य उसे सौंप दिया. अफगानिस्तान के दूसरे सबसे बड़े शहर कंधार में तालिबान ने वहां के स्थानीय राजनेताओं को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वो अपने इलाके के सैनिकों को लड़ाई न करने के लिए कहें. कंधार शहर भी बिना लड़ाई के ही तालिबान के नियंत्रण में चला गया. तो इस तरह बिना किसी ख़ास ताक़त के भी तालिबान ने अफगानिस्तान को अपने क़ाबू में ले लिया और अमेरिका के मुंह पर एक डरपोक मुल्क का तमग़ा पोत गया. इन 5 वजहों के चलते ही आज अफगानिस्तान की ऐसी हालत हुई है. आपका इस विश्लेषण पर क्या कहना है? अपनी राय हमें कमेंट करके जरूर बताएं.
कोरोना वैक्सीनेशन का दूसरा चरण शुरु हो चुका है. दूसरे चरण की शुरुआत के साथ ही आमजन को वैक्सीन लगाने का काम और तेज हो गया। वैक्सीन के बाद इसके अनुभव आमजन एक दूसरे के साथ साझा करते दिख रहे हैं। पहले फैज में वैक्सीन को लेकर लोगो के मन में कई प्रकार की भ्रान्तियां थी, जिससे लोग वैक्सीन लगाने से डर रहे थे। अब वैक्सीनेशन को लेकर जो अनुभव सामने आए हैं, वो आपको चौंका सकते हैं, ख़ास बात यह कि ये अनुभव दूसरे देशो से भी देखने को मिल रहे हैं। विदेशो के विभिन्न प्रिंट मीडिया में छपे एक सर्वे को देखा जाए तो कोविड वैक्सीन लगने के बाद कई लोगों की लंबे समय से चल रही बीमारियां दूर हो गईं. पहला दावा - स्लिप डिसऑर्डर बीमारी हुई गायब एक महिला ने दावा किया कि कोरोना वैक्सीन लगने के बाद उसके पति की करीब 15 साल पुरानी स्लीप डिसऑर्डर बीमारी ठीक हो गई. दूसरा दावा - कई बीमारियों से मिली मुक्ति वहीं कुछ और लोगों ने यह भी दावा किया कि वायरस से संक्रमित होकर ठीक होने के बाद उनकी कई बीमारियां ठीक हो गई. तीसरा दावा - पैरो की अकड़न हुई दूर एक विदेशी बुजुर्ग महिला की 6 महीनो पहले ‘नी रिप्लेसमेंट’ सर्जरी हुई थी। उसके बाद उनको चलने में बहुत परेशानी, टिश्यूज में इन्फेक्शन की वजह से भयंकर दर्द रहता था। इस महिला को एक माह पहले अस्त्राजेनेका वैक्सीन की पहली डोज लगी। वह डेली मेल से बातचीत में कहती हैं, ‘‘अगली सुबह मैं उठी तो पैरों का दर्द और अकड़न गायब थी। मुझे यकीन नहीं हुआ। मैंने अपने पार्टनर से मजाक में कहा कि क्या वैक्सीन की वजह से ऐसा कुछ हुआ। मैं अपना पांव मोड़ तक नहीं पाती थी। अब मैं पूरा पैर सीधा कर सकी हूं और जूते-मोजे पहन सकती हूं। मुझे लगता है कि मैं जल्द ही काम पर लौट पाऊंगी।’’ चौथा दावा - वर्टिगो बीमारी से मिली मुक्ति पिछले महीने ब्रिटिश अखबार की न्यूज के मुताबिक वहां की जनरल फिजीशियन एली कैनन ने के सामने एक अजीब केस आया। जिसमे रोगी को लाइम डिजीज थी। डॉक्टर के मुताबिक, कोविड वैक्सीन मिलने के कुछ दिन बाद ही लंबे समय से चली आ रही उसकी थकान दूर हो गई। एक महिला ने दावा किया उसे 25 साल से वर्टिगो की समस्या थी। वैक्सीन लगने के चार दिन बाद यह दिक्कत गायब हो गई। पाँचवां दावा - एग्जिमा से मिली मुक्ति एक महिला एग्जिमा से बुरी तरह प्रभावित थी। हाथ, पैरों और शरीर के आधे हिस्से में भयंकर खुजली होती थी। वैक्सीन लगने के कुछ ही घंटों बाद एग्जिमा के निशान पूरी तरह गायब हो गए। छठा दावा - आराम से आने लगी नींद एक अन्य महिला ने लिखा कि उसके पति को 15 साल पहले ‘‘स्लीप डिसऑर्डर’’ डायग्नोज हुआ था। वैक्सीन लगने के बाद उनके पति पहली बार पूरी नींद सो पाया। पोलियो, चेचक, टीबी के टीके के दौरान भी दिखा ऐसा असर पहले भी पोलियो, चेचक, टीबी के टीका लगाने के बाद ऐसा हो चुका है ऐसा नहीं कि टीकों के ऐसे असर वैज्ञानिकों के लिए नई बात हों। इस प्रकार की घटनाओं को दशकों से ‘‘नॉन स्पेसेफिक इफेक्ट्स’’ की कैटिगरी में दर्ज किया जाता रहा है। 70 और 80 के दशक में पता चला था कि चेचक के टीकों ने पश्चिमी अफ्रीकी देशों में बच्चों की मौत का खतरा एक-तिहाई तक कम कर दिया था। पोलियो वैक्सीन को लेकर रूसी वैज्ञानिकों ने पाया था कि इससे फ्लू और अन्य इन्फेक्शंस से 80 फीसदी तक रोकथाम मिलती है। उसी तरह ग्रीक और डच रिसर्चर्स ने बीसीजी टीके से बुजुर्गों में आम इन्फेक्शंस का खतरा कम होने के सबूत पाए हैं। टीबी के टीके को कैंसर और अल्जाइमर जैसी बीमारियों में भी फायदेमंद होने की बात सामने आई थी। आख़िर किन वजहों से ऐसा होता है? एक रिसर्च के अनुसार इस प्रकार की भयंकर बीमारी के माहौल से मनुष्य हाई लेवल के तनाव में आ जाता है। जिससे उनके इम्युन सेल्स की इन्फेक्शन से लड़ने की ताकत कम हो जाती है। और शरीर की इम्युनिटी बढ़ने लगती है. इस तरह टीका लगने के बाद शरीर में अच्छे प्रभाव देखने को मिलने लगते है.
कोरोना वायरस ने हम सबका जीवन बुरी तरह से प्रभावित किया है. कोरोना संक्रमितों के मामले में भारत पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर है. वहीं सबसे ज्यादा मामलों के साथ अमेरिका पहले नंबर पर है. जहां 12 मिलियन से ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ चुके हैं. वहीं इस महामारी से अब तक 2 लाख 55 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. अब कोरोना से छुटकारा पाने का आखिरी इलाज कोरोना वैक्सीन ही है. जिस पर कई कंपनियां तेजी से काम कर रही है. इसी बीच एक ऐसी ख़बर आ रही है, जो आपका दिल खुश कर देगी. ख़बर यह है कि 11-12 दिसंबर से कोरोना का टीकाकरण कार्यक्रम शुरु हो सकता है. *दरअसल 20 नवंबर को अमेरिका की दवा कंपनी फाइजर और जर्मनी की उसकी साझेदार बायोएनटेक ने अपने कोविड-19 टीके के आपात इस्तेमाल की अनुमति लेने के लिए अमेरिका के एफडीए यानी खाद्य और औषधि प्रशासन में आवेदन किया था. एफडीए की टीके से संबंधित परामर्श समिति की 10 दिसंबर को बैठक होनी है. अमेरिका में कोरोना वायरस टीकाकरण कार्यक्रम के प्रमुख डॉक्टर मोनसेफ स्लाउ ने कहा कि "हमारी योजना मंजूरी मिलने के 24 घंटे के अंदर टीकों को टीकाकरण कार्यक्रम स्थलों तक पहुंचाने की है, लिहाजा मुझे लगता है कि मंजूरी मिलने के दो दिन बाद 11 या 12 दिसंबर से टीकाकरण कार्यक्रम शुरू हो जाएगा." *अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर ने जर्मनी की बायोएनटेक के साथ मिलकर यह वैक्सीन बनाई है. जिनकाद दावा है कि यह वैक्सीन 95 प्रतिशत तक कारगर है. सब कुछ सही रहा तो 11-12 दिसंबर को वो लम्हा आ जाएगा, जिसका इंतजार पूरी दुनिया कर रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका में फाइजर 20 डॉलर में वैक्सीन की एक डोज दे रही है. यानी करीब डेढ़ हजार रुपये। भारत में वैक्सीन की एक डोज 2,000 रुपये के आसपास हो सकती है. अब सवाल यह उठता है कि यह वैक्सीन भारत में कब तक आ सकती है? तो आपको बता दें कि भारत के साथ फाइजर की अभी तक कोई डील नहीं हुई है. अगर किसी भारतीय दवा कंपनी से फाइजर डील करती है या खुद ही मार्केट में उतरती है, तो यह देखने वाली बात होगी लेकिन फाइजर को लेकर यह चुनौती है कि इसे पूरे भारत में माइनस 70 डिग्री सेल्सियस की सुपर कोल्ड-चेन तैयार करना बहुत मुश्किल भरा होगा.
कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया चीन से खार खाए बैठी है. इसके बावजूद चीन ने एक ऐसा काम कर दिया है, जिसके चलते उसकी पूरी दुनिया में थू-थू हो रही है.. उसने अमेरिका समेत 5 पश्चिमी देशों को आंखें निकालने की धमकी दे डाली है. सवाल उठता है कि आखिर वो 5 देश कौनसे हैं और चीन ने उन्हें ऐसी धमकी क्यों दी? आइये, आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं. *दरअसल हांगकांग में जिस तरह से मानवाधिकारों का हनन हो रहा है, लोकतंत्र समर्थकों को रौंदा जा रहा है, चीन वहां अपने कठोर और द्वेषपूर्ण नीति चला रहा है. हाल ही चीन ने हॉन्गकॉन्ग में चुने गए 15 सांसदों को अयोग्य ठहराने के नए नियम बनाए हैं. पिछले हफ़्ते चीन ने एक प्रस्ताव पास किया जिसके तहत हॉन्ग कॉन्ग की सरकार उन नेताओं को बर्ख़ास्त कर सकती है जो उनके अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं. इसके बाद हॉन्ग कॉन्ग ने चार लोकतंत्र समर्थक सांसदों को बर्ख़ास्त भी कर दिया. *जिसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा ने चीन के इन नियमों की आलोचना करते हुए चीन से अपील की कि "वो इन सांसदों को बहाल करे क्योंकि उसका ये क़दम हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता और आज़ादी की रक्षा करने की चीन की क़ानूनी प्रतिबद्धता का उल्लंघन है." *चीन को उनका विरोध करना इतना नागवार गुजरा कि उसने बोलने की मर्यादा तक पार कर दी. तिलमिलाये चीन के चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने पश्चिमी देशों को चीन के मामलों से दूर रहने की चेतावनी दी। चीनी विदेश मंत्रालय के वुल्फ वॉरियर के रूप में जाने वाले लिजियान ने कहा, "पश्चिमी लोगों को सतर्क रहना चाहिए अन्यथा उनकी आंखें बाहर निकाल ली जाएंगी। उनकी पांच आंखें हैं या दस, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि वे चीन की संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों को नुकसान पहुंचाने का साहस करते हैं, तो उन्हें अपनी आंखों के बारे में सावधान रहना चाहिए, जिन्हें फोड़ा जा सकता है और उन्हें अंधा किया जा सकता है।" *आपको बता दें कि इन पाँचों देशों के समूह को 'फ़ाइव आइज़' भी कहा जाता है जो कि आपस में ख़ुफ़िया जानकारी साझा करते हैं. कोरोना वायरस के चलते पहले से ही कई देशों की आंखों की किरकिरी बने चीन ने इन 5 शक्तिशाली राष्ट्रों को हड़काकर और दुश्मनी मोल ले ली है. वक्त बताएगा कि चीन की यह धमकी उसे कितनी महंगी पड़ सकती है?
21 March 2023 01:49 PM
20 March 2023 03:07 PM
20 March 2023 12:27 PM
20 March 2023 08:43 AM
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हमारे पास कुछ मुट्ठी भर लोग हैं, या यूं कहें कि ना के बराबर ही हैं। लेकिन जो हैं, वो अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं। खर्चे भी सामर्थ्य से कुछ ज्यादा हैं और इसलिए समय भी बहुत अधिक नहीं है। ऊपर से अजीयतों से भरी राहें हमारे मुंह-नाक चिढ़ाने को सामने खड़ी दिखाई दे रही हैं।
हमारे साथ कोई है तो वो हैं- आप। हमारी इस मुहिम में आपकी हौसलाअफजाई की जरूरत पड़ेगी। उम्मीद है हमारी गलतियों से आप हमें गिरने नहीं देंगे। बदले में हम आपको वो देंगे, जो आपको आज के दौर में कोई नहीं देगा और वो है- सच्ची पत्रकारिता।
आपका
-बाबूलाल नागा
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