TICKER
|
|
कोरोना काल ने समझाया दिया कि जिंदगी की क्या क़ीमत है. कोरोना काल के बाद लोग परिवार की सुरक्षा को लेकर बेहद सचेत हो गए हैं। इसी का नतीजा है कि देशभर में हेल्थ इंश्योरेंस कराने वालों की बाढ़ सी आ गई है. लेकिन ज़रा सोचिए, क्या हो अगर वही हेल्थ इंश्योरेंस मुफ्त में या किफायती दामों में मिल जाए? राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार अपने प्रदेशवासियों के लिए एक ऐसी ही सौगात लेकर आया है. और तो और सरकार की इस सौगात का रजिस्ट्रेशन भी होना शुरु हो गया है. दरअसल राजस्थान सरकार अपने प्रदेशवासियों को क्वालिटी चिकित्सा सुविधाएं मुहैया करवाने के लिये यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज लागू करने जा रही है. जिसके तहत सरकार ने 1 अप्रैल 2021 से ’मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना’ लागू की है. इस योजना के मुताबिक- राज्य के हर परिवार को सरकारी अस्पतालों में हर साल 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज दिया जाएगा. इस स्वास्थ्य बीमा कवर में कई बीमारियों के इलाज के 1576 पैकेजेज और प्रोसिजर शामिल किए गए हैं. जिसमें मरीज के अस्पताल में भर्ती होने से 5 दिन पहले का चिकित्सकीय परामर्श, जांच, दवाइयां तथा डिस्चार्ज के बाद के 15 दिनों का संबंधित पैकेज से जुड़ा चिकित्सा खर्च भी फ्री इलाज में शामिल होगा. ’मुख्यमंत्री’ की बजट घोषणा के अनुरूप राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और सामाजिक आर्थिक जनगणना के पात्र लाभार्थियों के साथ-साथ अब मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना से संविदाकर्मियों, लघु एवं सीमांत कृषकों को निःशुल्क चिकित्सा सुविधा का लाभ मिल पायेगा। इसके अतिरिक्त प्रदेश के सभी अन्य परिवारों को बीमा प्रीमियम की 50 प्रतिशत राशि पर ’वार्षिक 5 लाख रूपये’ तक की निःशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। उक्त प्रीमियम भुगतान डेटाबेस को राजस्थान स्टेट हैल्थ एश्योरेंस एजेंसी द्वारा संधारित एवं अपडेट किया जायेगा। वहीं राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने इस योजना के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि "1 मई से मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना लागू कर लाभार्थियों को लाभान्वित किया जाएगा. पूर्ववर्ती स्वास्थ्य बीमा योजना में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और सामाजिक आर्थिक जनगणना के पात्र लाभार्थियो को योजना का लाभ मिल रहा था, अब मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के अनुरूप राज्य के संविदाकर्मियों, लघु एवं सीमांत कृषकों को निःशुल्क चिकित्सा सुविधा का लाभ मिल पाएगा. साथ ही, प्रदेश के सभी अन्य परिवारों को बीमा प्रीमीयम की 50 प्रतिशत राशि अर्थात 850 रुपए पर वार्षिक 5 लाख रुपए तक की निःशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होगी." वहीं मुख्य सचिव ने बताया कि "मुख्यमंत्री की बजट घोषणा और मंशा के अनुरूप राजस्थान देश में ऐसा ’पहला प्रदेश’ है जो अपने । इस योजना से प्रदेश के प्रत्येक परिवार को ’5 लाख रूपये’ तक का चिकित्सा बीमा उपलब्ध हो सकेगा जिससे वे सरकारी के साथ-साथ सम्बद्ध निजी चिकित्सालयों में भी चिकित्सा सुविधा का लाभ प्राप्त कर पायेंगे।" आप इस योजना का फायदा कैसे उठा सकते हैं? मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ लेने के लिये लाभार्थी स्वयं ऑनलाइन अथवा ई-मित्र पर जनआधार से लिंक प्लेटफॉर्म से पंजीयन करवाकर योजना से जुड़ सकते हैं. विशेष पंजीयन शिविर एक अप्रैल से 10 अप्रैल तक ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत स्तर पर तथा शहरी क्षेत्र में वार्ड स्तर पर लगाए जाएंगे. इन पंजीयन शिविरों के सफल क्रियान्वयन के लिए जिला स्तर पर जिला कलेक्टर एवं ब्लॉक स्तर पर संबंधित उपखंड अधिकारी के निर्देशन में दल गठित किए गए हैं. इसके बाद भी रजिस्ट्रेशन का कार्य 30 अप्रेल तक जारी रहेगा. लाभार्थी ख़ुद ऑनलाइन अथवा ई-मित्र के जरिए अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. स्वास्थ्य बीमा योजना में पहले से लाभान्वित हो रहे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और सामाजिक-आर्थिक जनगणना के पात्र परिवारों को पंजीयन कराने की आवश्यकता नहीं होगी.
वसुंधरा राजे, मायने राजस्थान की राजनीति का सशक्त हस्ताक्षर. एक लंबे अर्से से ख़ामोश पूर्व मुख्यमंत्री एक बार फिर से मुखर हो गई है. वो ऐसी मुखर हुई कि सुर्खियां बनने लगीं. सुर्खियां ये कि "वसुंधरा राजे सूबे के 33 ज़िलो का दौरा कर सकती है." अब सवाल उठता है कि आखिर लंबे समय से शांति साधे पूर्व सीएम आखिर अचानक से क्यों सक्रिय हो गई? सिसायी पंडितों ने इसके कई माने खोज निकाले हैं. अव्वल तो यह कि "राजस्थान की कद्दावर नेता के रूप में अपनी धाक जमाने वाली वसुंधरा राजे को अब अपनी ताकत का प्रदर्शन करना पड़ रहा है। वसुंधरा राजे ‘देव दर्शन’ की शुरुआत करने जा रही है। जिसमें वो राजस्थान के 33 जिलो का भ्रमण करती नजर आ सकती है।" एक वजह यह भी है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में 2 साल से कम समय बचा है। सूत्रों की मानें तो भाजपा में राजे को किनारे करने की रणनीति चल रही है। भाजपा नेतृत्व दबे पाँव राज्य के सी.एम. उम्मीदवार के तौर पर किसी ओर चेहरे की तलाश कर रहा है। इसकी भनक ख़ुद राजे को भी है। ऐसे में 'महारानी' चुप कैसे रह सकती हैं? वसुंधरा राजे के समर्थन में विधायक व पूर्व विधायक का एक बड़ा दल है। वसुंधरा राजे इसी ताकत का इस्तेमाल कर जनता के बीच अपने माहौल से भाजपा नेतृत्व को आगाह करना चाहती है। कुल मिलाकर ‘देव दर्शन’ के जरिये प्रतिद्वंदियों के चक्रव्यूह को भेदने की रणनीति बनाई जा रही है। हालांकि इस यात्रा में कौन-कौनसे नेता शामिल होगें, न तो इसका खुलासा हुआ है और न ही ‘देव दर्शन’ के प्रोग्राम संबंधी कोई सूची जारी हुई है। लेकिन यह तय है कि जब राजे आएंगी तो कुछ न कुछ कमाल होना तय है.
श्रीडूंगरगढ़ के धनेरु में शनिवार को किसान सम्मेलन का आयोजन होगा. जिसमें सूबे के सीएम अशोक गहलोत भी शिरकत करेंगे. अशोक गहलोत को राजनीति का 'जादूगर' कहा जाता है. ऐसे में जब 'जादूगर' इस सम्मेलन में हिस्सा लेंगे तो कुछ न कुछ 'जादूगरी' तो दिखाएंगे ही. जानकारों का कहना है कि अशोक गहलोत यहां एक तीर से 3 निशाने लगाने वाले हैं. 1. एक साथ 3 जिलों के किसानों को लुभाएंगे गहलोत सबसे पहले तो आपको बता दें कि इस किसान सम्मेलन में 3 जिलों के किसान शामिल होंगे. बीकानेर, चुरु और नागौर. इस मौके को भला कांग्रेस कैसे छोड़ सकती है और वो भी किसान आंदोलन के दौर में. बस ! यहीं पर अशोक गहलोत करामात करेंगे. इस सम्मेलन में एक साथ 3 जिलों के किसानों को लुभाएंगे. 2. सुजानगढ़ के उपचुनावों के लिए वोटर्स को साधेंगे श्रीडूंगरगढ़ के धनेरु इलाक़ा चुरू के सुजानगढ़ विधानसभा के पास ही है. ऐसे में इस किसान सम्मेलन में सुजानगढ़ से भी यहां लोग पहुंचेगे. सुजानगढ़ में कुछ समय बाद उपचुनाव होने वाले हैं. जहां से कांग्रेस के भंवरलाल मेघवाल विधायक थे. ऐसे में अशोक गहलोत उपचुनावों के लिए वोटर्स को साधने का काम भी करेंगे 3. पायलट के शक्ति प्रदर्शन का जवाब अशोक गहलोत के इस सम्मेलन में पहुंचने के पीछे एक वजह शक्ति प्रदर्शन को भी माना जा रहा है. अशोक गहलोत के समर्थक धनेरु में बड़ा शक्ति प्रदर्शन करके सचिन पायलट की हाल ही में हुई रैली का जवाब देना चाहते हैं। बस ! इन तीन निशानों पर तीर लगाने के लिए अशोक गहलोत इस किसान सम्मेलन में पहुंच रहे हैं. सभास्थल के पास ही हेलीपेड तैयार किया गया है, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ ही प्रभारी अजय माकन और प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द डोटासरा पहुंचेंगे. जिला कलक्टर नमित मेहता और पुलिस अधीक्षक प्रीति चंद्रा ने गुरुवार को ही सभास्थल का दौरा करके तैयारियों का निरीक्षण किया. अब देखने वाली बात यह होगी कि गहलोत के ये निशाने लक्ष्य को कितना भेद पाते हैं?
वसुंधरा राजे, राजस्थान की राजनीति का एक बड़ा नाम. ये नाम जितना बड़ा है, उतना ही बड़ा उनसे जुड़ा एक सवाल इन दिनों पूछा जा रहा है. वो ये कि आखिर इन दिनों महारानी यानी वसुंधरा राजे कहां ग़ायब हैं? जी हां, वसुंधरा राजे काफी समय से राजनीति की गलियारों से नदारद हैं. आलम यह है कि हाल ही में जयपुर में आयोजित कोर कमेटी की अहम बैठक में शामिल नहीं हुईं थी. यहां तक भी सब ठीक था लेकिन अब तो उन्होंने भाजपा विधायक दल की बैठक में भी गैरहाजिर रहने की इच्छा जता डाली है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर वसुंधरा की इस 'ग़ैरहाजिरी' के पीछे की वजह क्या है? कुछ लोग इसके पीछे सियासी दांव-पेच को बता रहे हैं तो कुछ लोगों का कहना है कि वसुंधरा राजे और प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यही वजह है कि राजे और पूनिया के समर्थक अगल-अलग मंच बनाकर प्रदेश संगठन के समानांतर गतिविधियां चला रहे हैं. हालांकि, सूबे के नेताओं ने राजे के नाराज़ होने से साफ इनकार कर दिया है. लेकिन सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों चले प्रदेश संगठन के घटनाक्रमों से राजे रूठ गई हैं. वहीं कुछ लोगों की दलील है कि राजे की बहू निहारिका राजे का तबियत नासाज़ चल रही है. खैर, जो भी हो लेकिन राजे की गैर-मौजूदगी से सियासी गलियारों में चर्चा का बाज़ार गर्म है. भले ही राजे की भाजपा नेता ये साबित करने में जुटे हों कि पार्टी के अंदरखाने सब ठीक चल रहा है लेकिन ये पब्लिक है, सब जानती है.
राजस्थान में गहलोत सरकार का आधा कार्यकाल कमोबेश होने को है। ऐसे में सवाल किया जा सकता है कि क्या राजस्थान में कड़ी चुनौतियों से जूझ रही कांग्रेस अगली बार फिर से सत्ता में आने का संकेत दे रही है? ये सवाल जितना टेढ़ा है, जवाब उतना ही पेचीदा. लेकिन यह कहने से कतई गुरेज नहीं कि समूची राष्ट्रीय कांग्रेस फिलवक़्त संकट के दौर से गुजर रही है। ऐसे में राजस्थान में 'एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस' के जनमत के समीकरणों को इस बार बदल देने की तैयारियां होने लगी है। साफ लफ्जों में कहें तो राजस्थान भाजपा में वसुंधरा की आहट सुनाई देने लगी है। दो गुटों में बंटी भाजपा में वसुंधरा राजे ने खुद के होने को उसी प्रभाव से साबित किया है। ठीक उनता, जितना अशोक गहलोत ने सचिन पायलट की चुनौती को निष्प्रभावी किया था। फिर भी कांग्रेस संगठन ने अपनी रंगत दिखानी शुरू कर दी है। निकाय चुनाव शहरी है। भाजपा शहरी लोगों की पार्टी मानी जाती है- इसमें कांग्रेस विपरीत स्थिति में भी भारी साबित हुई है। राजस्थान में कुल 196 निकायों में से कांग्रेस 123 पर काबिज है। भाजपा 64 और शेष निर्दलीय हैं। हाल ही में 20 जिलों की 87 निकाय चुनाव में कांग्रेस के 48 तथा भाजपा के 37 अध्यक्ष हैं। बाकी निर्दलीय समेत अन्य है। इसके अलावा शहर कांग्रेस की बढ़त के साथ अब राजस्थान में 4 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से कांग्रेस के अगली बार की व्यूह रचना के संकेत मिल सकेंगे। किसान आंदोलन का भविष्य और भविष्य की राजनीतिक हालातो को दरकिनार कर देखें तो अगली बार सत्ता में आने की कांग्रेस की आज की पृष्ठभूमि भाजपा की तुलना में कमजोर नहीं है। बाकी तो राजनीति भविष्य के गर्भ में रहती है।
निकाय चुनाव के बाद ही राजस्थान में भाजपा अब एक्शन मोड में नजर आ रही है. पार्टी ने अपने ही नेता-कार्यकर्ताओं को एक नोटिस थमा दिया. मिली जानकारी के अनुसार शिकायतों के आधार पर नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है. इसके साथ ही पार्टी ने एक्शन लेते हुए कई नेताओं को निष्कासित भी कर दिया. इससे पहले भी बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया ने पार्टी के 18 नेताओं पर अनुशासन का डंडा चलते हुए एक साथ निष्कासन किया था. आपको बता दें की बीजेपी ने शिकायतों के आधार पर यह कार्यवाही की है. दहरसल, निकाय चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले नेताओं पर प्रदेश भाजपा ने एक बार फिर सख्ती दिखाई है. ताज़ा कार्रवाई बीकानेर देहात भाजपा में हुई है जहां दो वरिष्ठ नेताओं पर अनुशासन का डंडा चलाया गया है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया ने बीकानेर देहात भाजपा की रिपोर्ट पर एक्शन लेते हुए दो वरिष्ठ नेताओं प्रीती शर्मा और जुगल किशोर को पार्टी से 6 वर्ष के लिए निष्कासित करने के आदेश जारी किये हैं. भाजपा नेत्री प्रीती शर्मा पर जहां भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ नगरपालिका चेयरमेन का चुनाव लड़ने की शिकायत थी, तो वहीं जुगल किशोर की पार्टी विरुद्ध गतिविधियों में भूमिका संदिग्ध पाई गई थी. बीते दिनों भीलवाड़ा में भी 18 ‘बगावती’ नेताओं पर अनुशासन का डंडा चला चुके हैं. इन नेताओं पर भी भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने की शिकायतें मिली थी. कार्रवाई के तहत भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष रेखा पुरी और चार पूर्व पार्षद समेत 18 कार्यकर्ताओं को पार्टी से निष्कासित करने का सख्त कदम उठाया गया था. नेता-कार्यकर्ताओं को दिए गए नोटिस जानकारी के अनुसार भाजपा की अनुशासन समिति ने निकाय चुनाव में बगावती नेताओं को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया हुआ है. बागी प्रत्याशियों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की भूमिका की शिकायतों पर कारण बताओ नोटिस भी जारी किये गए हैं. संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर उनके विरूद्ध प्रसंज्ञान लेकर कार्रवाई की जा रही है. ‘बगावत’ नहीं बर्दाश्त प्रदेश अध्यक्ष डॉ पूनिया पहले ही ये साफ़ कर चुके हैं कि पार्टी से बगावत करने वाले नेताओं और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल नेताओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जिला संगठनों से लगातार मिल रही शिकायतों की जांच पड़ताल कर कार्रवाई का सिलसिला जारी रहेगा.
बीकानेर के महाराजा गंगासिह विश्वविद्यालय के भवनों का लोकार्पण कार्यक्रम चल रहा था. राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इस कार्यक्रम का हिस्सा थे. इस कार्यक्रम के दौरान कुछ ऐसा हुआ, जिसने दोनों के बीच कड़वाहटों को दूर कर दिया. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर मसला क्या था? तो इसे समझने के लिए हमें कुछ महीने पीछे का रुख करना होगा. *बात कुछ ही महीने पहले की है. तब अशोक गहलोत सरकार के अस्तित्व पर संकट छाया था. वहीं राज्यपाल की भूमिका पर उठे सवालों से मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव की छवि बनी गई थी. लेकिन 4 दिसंबर 2020 को महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के इस कार्यक्रम में जो हुआ, उसने बता दिया कि सियासत अपनी जगह है और सम्मान अपनी जगह. इस कार्यक्रम में राज्य के ऊर्जा एवं जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री भंवर सिंह भाटी और विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. विनोद कुमार सिंह मौजूद थे. लेकिन सबकी नज़रें तो मुख्यमंत्री और राज्यपाल पर टिकी थीं. इस मंच से जनता के बीच जो मैसेज गया, उससे संशय के सभी बादल छितर गए. इस दौरान राज्यपाल औऱ मुख्यमंत्री के बीच पदों की गरिमा, व्यवहारिक परिपक्वता और एक दूसरे के पद का सम्मान पूरे देश के मुख्यमंत्रियों औऱ राज्यपालों के लिए अनुकरणीय रहा. जिसने साबित कर दिया कि संविधान गत प्रक्रिया पालना का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच सौहार्द और विश्वास के रिश्ते नहीं हो सकते. रहा-सहा संश्य दोनों की टिप्पणियों ने दूर कर दिया. *"राज्यपाल कलराज मिश्र ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तारीफ करते हुए कहा कि "मुख्यमंत्री सकारात्मक रूप से संवैधानिक मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए अपने कर्तव्यों का निवर्हन कर रहे हैं. संवैधानिक प्रमुख होने के नाते मैने और कार्यपालिका प्रमुख होने के नाते राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह तय किया है कि कई ऐसे विषय है जिन पर हम दोनों संस्थाएं एक होकर राज्य की जनता की भलाई कर सके. ऐसे में मेरा सीएम से आगे भी आग्रह किया कि कुलाधिपति एवं विश्वविद्यालयों का मुखिया होने के नाते मेरे द्वारा जो नीतियां निर्धारित की जा रही है उसके लिए राज्य सरकार पूर्ण रूप से सहयोग प्रदान करें" इस तरह राज्यपाल ने पूरे सम्बोधन में सरकार, शिक्षा और आमजन के लिए प्रदेश में सकारात्मक वातावरण बनाया. इसके अलावा राज्यपाल ने मुख्य रूप से विधि शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय नागरिकों में अभी भी विधिक चेतना का अभाव है. यहां का विद्यार्थी विधिक जागरूकता के लिए कार्य करेगा तो यह लोकतंत्र के लिए बड़ी उपलब्धि होगी. साथ ही कुलाधिपति के रूप में शैक्षणिक विकास की संकल्पना रखी. *अब बारी थी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की. उन्होंने भी राज्यपाल की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए कहा कि "मैं तीन बार मुख्यमंत्री रहा लेकिन कलराज मिश्र पहले ऐसे राज्यपाल हैं जो चलाकर फोन करते हैं. वे मुझे अपना ध्यान रखने और मास्क लगाने की हिदायत देते हैं. जब राज्यपाल विधिक का वाचन कर रहे थे तब मैं भावुक ही हो गया. इस तरह मुख्यमंत्री ने भी राज्यपाल के प्रति सम्मान का भाव प्रकट किया." इसके अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि उनकी सरकार ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयास किये गए है जिसके कारण राजस्थान राज्य शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्य के श्रेणी में आ सका. हमें जब-जब मौका मिला, तब-तब राज्य में महत्वपूर्ण शिक्षा के केन्द्र जैसे आई.आई.टी., आई.आई.एम., नए विश्वविद्यालय, आयुर्वेद विश्वविद्यालय, चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं मेडिकल महाविद्यालय आदि संस्थाओं की स्थापना कर राज्य में उच्च शिक्षा के लिए माहौल बनाने का प्रयास किया. *राज्यपाल और सीएम की एक-दूसरे के लिए इन टिप्पणियों से उनकी नई छवि ईजाद हुई है. और यह सब मुमकिन हो सका, महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी के इस लोकार्पण कार्यक्रम के चलते. विवि के कुलपति ने राज्यपाल व मुख्यमंत्री को एक मंच पर लाकर यह काम बखूबी कर दिया. कार्यक्रम के एक दिन पहले ही अनौपचारिक संवाद में कुलपति प्रो विनोद सिंह ने कहा था कि शिक्षा पर दुनियाभर में सर्वाधिक ध्यान दिया जाए तो हिंसा और विवाद की नोबत ही नहीं आए.
साल 1985 की बात रही होगी. तब विश्व हिंदू परिषद की 'गंगाजल यात्रा' ख़ूब सुर्खियां में आई थीं. लेकिन इस यात्रा से भी ज्यादा, जिस महिला ने इसमें हिस्सा लेकर सुर्खियां बटोरीं, उनका नाम था- किरण माहेश्वरी. उस वक़्त उनकी उम्र सिर्फ 24 साल थी. किसे मालूम था कि यह महिला एक दिन राजस्थान की राजनीति का इतना बड़ा हस्ताक्षर बन जाएगी कि विधायक और उच्च शिक्षा मंत्री जैसे ओहदे भी उनके सामने छोटे पड़ जाएंगे. *किरण माहेश्वरी का जन्म 29 अक्टूबर 1961 को मध्यप्रदेश के रतलाम में हुआ था. उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय, केटरिंग कॉलेज, दादर, मुंबई और आईआईसीटी-उदयपुर से अपनी तालीम पूरी की.साल 1981 में उन्होंने सत्यनारायण माहेश्वरी से विवाह किया. माहेश्वरी दंपति के एक बेटा और एक बेटी हैं. भले ही किरण माहेश्वरी गृहस्थी में रम गई थीं लेकिन सियासत उनकी रगों से उफान मार रही थी. जो पहले सामाजिक कार्यकर्ता और फिर एक सियासतदां के तौर पर जमाने के सामने आना चाहती थी. इसी कड़ी में किरण माहेश्वरी अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा, भारत विकास परिषद, मृगेंद्र भारती, वैश्य महासम्मेलन, इंडियन लायंस परिसंघ और सावरकर स्मृति जैसे कई संगठनों में सक्रिय रहीं. साल 1985 में उन्होंने वीएचपी की 'गंगाजल यात्रा' से सियासत में क़दम रखे और 1989 में राम जन्मभूमि मुद्दे से उन्होंने महिला जागृति के क्षेत्र में पहचान कायम कर लीं. *साल 1992 में अयोध्या कार सेवा और साल 1993 में दिल्ली रैली से वो सबकी नज़रों में छा चुकी थीं. नतीजतन साल 1994 में उन्हें उदयपुर नगर परिषद की सभापति के तौर पर चुना गया. 1994 में ही किरण माहेश्वरी ने नारी-सशक्तिकरण के लिए महिला सहकारी बैंक की स्थापना की और यह बैंक महिला मुक्ति का अग्रणी संगठन बना. किरण माहेश्वरी तेज़ी से सियासी सीढ़ियां चढ़ रही थीं. साल 2004 में उन्होंने मेवाड़ में कांग्रेस की दिग्गज नेता गिरिजा व्यास को शिकस्त देकर उदयपुर-राजसमंद निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की. साल 2006 में उन्हें महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया. साल 2008 में उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राजस्थान विधानसभा चुनाव में चुनाव लड़ा और राजसमंद निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुनी गईं. 5 वर्षों में उन्होंने 650 से ज्यादा सवाल करने का रिकॉर्ड बनाया. साल 2009 में उन्होंने अजमेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 15 वीं लोकसभा में चुनाव लड़ा और कांग्रेस पार्टी के सचिन पायलट से हार गईं। साल 2011 में उन्हें बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में नामांकित किया गया। साल 2013 में उन्होंने दुबारा राजसमंद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और क़रीब 30,000 वोटों के फासले से जीतकर विधायक बनीं और बाद में वुसंधरा राजे सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री के पद पर काबिज हुईं. *एक सशक्त महिला नेत्री के तौर पर किरण माहेश्वरी ने ख़ूब पहचान बनाई. कई लड़ाइयां लड़ीं और जीतती गईं. लेकिन 30 नवंबर 2020 को बीजेपी की दिग्गज नेत्री किरण माहेश्वरी कोरोना वायरस से जिंदगी की जंग हार गई. 59 साल की उम्र में इस अदृश्य कोरोना ने दुनिया से उन्हें छीन लिया. उनके सियासी सफरनामे को कभी भूलाया नहीं जा सकेगा.
मानिक चंद सुराणा.. यह नाम लेते ही आपके जेहन में एक तसवीर बनने लगती है. एक विद्वान राजनेता, असल मायनों में जनप्रतिनिधि और समाजवादी चेहरे के रूप में पहचान रखने वाली एक शख़्सियत की. लेकिन अफसोस ! राजस्थान के दिग्गज राजनेता और पूर्व वित्त मंत्री मानिकचंद सुराणा अब इस दुनिया में नहीं रहे. पिछले कई दिनों से उनका जयपुर में इलाज चल रहा था. कुछ दिन पहले ही उन्होंने कोरोना से जंग जीती थी लेकिन कई दूसरी बीमारियों से वो जंग हार गए और आज सुबह क़रीब 6 बजे उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनका अंतिम संस्कार कल 26 नवम्बर को दोपहर 2 बजे गोगागेट स्थित ओसवाल श्मसान घाट पर होगा. सुराणा ने ज्यादातर राजनीति अपने बलबूते पर की. उनके राजनीतिक सफर में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल, जनता पार्टी जैसी कई पार्टियां शामिल रहीं. एक वक़्त ऐसा भी आया जब बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो सुराणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. 2013 में वो लूणकरणसर से निर्दलीय विधायक बने. सुराणा की पहचान एक असली जनप्रतिनिधि के तौर पर रही है. वो अपने-आप में एक पार्टी के तौर पर जाने जाते थे. आज के दौर में ऐसे राजनेता कम ही होते हैं. जनता उन्हें दिलों-जान से चाहती है. लेकिन अब सूबे को अपनी सियासी चमक से चमकाने वाला ये सितारा हमेशा के लिए बुझ गया है. मानिकचंद सुराणा के निधन पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने दुख जताया है.
01 June 2023 06:59 PM
29 May 2023 09:45 AM
29 May 2023 08:31 AM
26 May 2023 07:00 PM
© Copyright 2019-2025, All Rights Reserved by Khabar Update| Designed by amoadvisor.com
भारत अपडेट डॉट कॉम एक हिंदी स्वतंत्र पोर्टल है, जिसे शुरू करने के पीछे हमारा यही मक़सद है कि हम प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी परोस सकें। हम कोई बड़े मीडिया घराने नहीं हैं बल्कि हम तो सीमित संसाधनों के साथ पत्रकारिता करने वाले हैं। कौन नहीं जानता कि सत्य और मौलिकता संसाधनों की मोहताज नहीं होती। हमारी भी यही ताक़त है। हमारे पास ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं, हमारे पास सत्य है, हमारे पास वो पत्रकारिता है, जो इसे ओरों से विशिष्ट बनाने का माद्दा रखती है।
'भारत अपडेट' शुरू करने के पीछे एक टीस भी है। वो यह कि मैनस्ट्रीम मीडिया वो नहीं दिखाती, जो उन्हें दिखाना चाहिए। चीखना-चिल्लाना भला कौनसी पत्रकारिता का नाम है ? तेज़ बोलकर समस्या का निवारण कैसे हो सकता है भला? यह तो खुद अपने आप में एक समस्या ही है। टीवी से मुद्दे ग़ायब होते जा रहे हैं, हां टीआरपी जरूर हासिल की जा रही है। दर्शक इनमें उलझ कर रह जाता है। इसे पत्रकारिता तो नहीं कहा जा सकता। हम तो कतई इसे पत्रकारिता नहीं कहेंगे।
हमारे पास कुछ मुट्ठी भर लोग हैं, या यूं कहें कि ना के बराबर ही हैं। लेकिन जो हैं, वो अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं। खर्चे भी सामर्थ्य से कुछ ज्यादा हैं और इसलिए समय भी बहुत अधिक नहीं है। ऊपर से अजीयतों से भरी राहें हमारे मुंह-नाक चिढ़ाने को सामने खड़ी दिखाई दे रही हैं।
हमारे साथ कोई है तो वो हैं- आप। हमारी इस मुहिम में आपकी हौसलाअफजाई की जरूरत पड़ेगी। उम्मीद है हमारी गलतियों से आप हमें गिरने नहीं देंगे। बदले में हम आपको वो देंगे, जो आपको आज के दौर में कोई नहीं देगा और वो है- सच्ची पत्रकारिता।
आपका
-बाबूलाल नागा
एडिटर, भारत अपडेट
bharatupdate20@gmail.com
+919829165513
© Copyright 2019-2025, All Rights Reserved by Bharat Update| Designed by amoadvisor.com
google.com, pub-9107207116876939, DIRECT, f08c47fec0942fa0