राजस्थान के कोटा से सूबे की सबसे बड़ी ख़बर आ रही है. कोटा के जेके लोन अस्पताल में पिछले 24 घंटे में 9 नवजात की मौत हो चुकी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक "जेके लोन अस्पताल में हर साल हज़ार के भी पार बच्चों की मौत हो जाती हैं. जान गंवाने वाले 9 बच्चों के परिवारवालों का आरोप है कि "जेके लोन अस्पताल का स्टाफ बेहद लापरवाह है. कर्मचारी ड्रिप लगाकर चाय पीने चले जाते हैं. वहां बैठकर हंसी-मजाक करते रहे हैं. रात को जब बच्चा तड़प रहा था, तब उसे देखने कोई भी नहीं आया. नर्सिंग स्टाफ ने सुबह डॉक्टर को दिखाने की बात कहकर भगा दिया. जब डॉक्टरों को बच्चे की परेशानी बताई तो उनका जवाब था कि बच्चा तो रोता ही है."
*कोटा के JK Lone Hospital में 9 नवजात की मौत से आप राजस्थान की मेडिकल कॉलेज से संबंधित हॉस्पिटलों के हालात का अंदाजा लगा सकते हैं. जांचें होती आई हैं, मुद्दे उठते रहे हैं लेकिन नतीजे वही ढाक के तीन पात रहे हैं. चेताने में गुरेज नहीं कि बीकानेर के पीबीएम हॉस्पिटल भी ऐसी लापरवाहियों से अछूता नहीं है. यहां भी इतनी अव्यवस्थाएं फैली हैं कि गिनते रह जाएंगे. जिनके सबसे बड़े कारण हैं- राजनीतिक हस्तक्षेप और बाहरी दबाव. ऐसा नहीं है कि इन अव्यवस्थाओं को सुधारने की कोशिशें ही नहीं हुईं. हुईं लेकिन नतीजे हर बार सिफर ही रहे. पीबीएम के नए अधीक्षक फिर से नई कवायद कर रहे हैं. पीबीएम अस्पताल में सुधार का माइक्रो प्लान तैयार किया जा रहा है.
*लेकिन पीबीएम को सुधारने की कवायद करने से पहले नए अधीक्षक ख़ुद से ये सवाल ज़रूर कर लें कि क्या वो पीबीएम को राजनीतिक हस्तक्षेप और बाहरी दबाव से मुक्त करवाने का सामर्थ्य रखते हैं? क्या वो जानते हैं कि उनसे पहले भी कई अधीक्षकों ने सुधार की कोशिशें कीं थी, उनका क्या हश्र हुआ था? कौन नहीं जानता कि पीबीएम में दलालों ओर गिरोहबंदी का बोलबाला है. तत्कालीन अतिरिक्त संभागीय आयुक्त की देखरेख में प्रशिक्षु आईएएस ने अध्ययन रिपोर्ट तैयार की थी. ये रिपोर्ट सभी संबंधित चिकित्सालयों के संदर्भ में राज्य सरकार को सौंपी गई थी. उस रिपोर्ट में सुधार के माइक्रो औऱ मेगा प्लान के साथ सुझाव थे. लेकिन अफसोस ! आज भी वे ही विसंगतियां बनी हुई हैं.
*अधीक्षक महोदय ! आपको पता होना चाहिए कि आपके अधीनस्थ लोग किन-किन के बिठाए हुए मोहरें हैं, जो जाने-अनजाने में आपसे ही उनके फायदे का आदेश करवाते हैं. आप क्या करेंगे ? बताइये. क्या आपके पास इसका कोई माइक्रोप्लान है? करोड़ों की सफाई के ठेके, संविदाकर्मी के पीछे का कॉकस आपसे छुपा है क्या? बाहर मेडिकल इक्यूपमेंट का धंधा करने वालों के चहेते ही आपके आंख, नाक और कान है. अस्पताल के चारों तरफ जितने अतिक्रमण हैं, उनके भी आका है. अस्पताल में दूध, सप्लाई, रसोड़े से लेकर चिकित्सकीय सामग्री की आपूर्ति से लेकर जहां भी हाथ डालेंगे, वहां छेद ही मिलेंगे. एकबारग़ी डॉक्टरों की बात छोड़ दीजिए, उनमें इंसानियत तो है. ज़रा अस्पताल के चिकित्सा उपकरणों के हाल जान लीजिएगा. मूलचंद हल्दी राम अस्पताल की धरातल और फिर ट्रोमा में हो रहा खेल भी समझ लीजिएगा. निगरानी औऱ अव्यवस्था के खिलाफ कार्रवाई यहीं से आज भी प्रमाण के साथ कर सकते हैं. प्रमाण इतने दिनों की सुपरिडेंटशिप से मिल ही गए होंगे.
*इन तमाम बातों पर मंथन करने के बाद भी अधीक्षक सुधार करने का सोचें नहीं तो सबसे पहले तो वो नेता ही उन्हें रोक देंगे जो पीबीएम के भरोसे नेतागिरी करते आए हैं. सनद रहे कि पीबीएम हॉस्पिटल का कॉकस तोड़ना अभिमन्यु की व्यूह रचना से खेलने जैसा है. लेकिन ये भी याद रहे कि 'हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-ख़ुदा'. आखिर अकेले बापू ने भी तो शक्तिशाली अंग्रेजों से देश को मुक्ति दिलाई थी. गर संकल्प शक्ति है तो साथ देने वालों की भी कमी नहीं. दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कामयाबी जरूर मिलेगी, साथ ही आपका पीबीएम अस्पताल राज्य के दूसरे सरकारी अस्पतालों के लिए एक नज़ीर के तौर पर जाना जाएगा. इसलिए उठाइये बीड़ा और सुधार डालिए पीबीएम अस्पताल.