हेम शर्मा, प्रधान संपादक
khabarupdateofficial@gmail.com
09 September 2021 04:38 PM
मेहनत करने वालों की सफलता पक्की होती है,
युवाओं के हाथ में ही देश की तरक्की होती है.
कहते हैं कि युवाओं में वो ताक़त होती है, जो किसी भी देश की तकदीर बदल दे, उसकी तरक्की के रास्ते खोल दे. किसी देश की तरक्की में उस देश की राजनीति का बड़ा रोल होता है. और राजनीति में ये युवा आ जाएं तो क्या ही माहौल होगा. लेकिन हकीकत की ज़मीन पर ऐसा हो नहीं पाता. आज का युवा राजनीति में आना तो चाहता है लेकिन भाई-भतीजावाद की पगडंडिया, सिर्फ अपनों को आगे बढ़ाने की सोच और सियासतदानों के स्वार्थ उनको मंजिल पाने नहीं होने देते. मेरा आज का 'विमर्श' मेरे शहर के उन युवाओं के नाम, जो राजनीति में आने की ख्वाहिश रखते हैं. इस 'विमर्श' में उन्हें पूरा साथ भी मिलेगा और सुझाव भी मिलेंगे. इसलिए उन्हें यह ज़रूरी तौर पर पढ़ना चाहिए.
चलिए, अब मैं अपनी बात रखता हूं. मैंने बीकानेर ज़िले के 873 युवाओं की लिस्ट बनाई है। ये वो युवा हैं, जो राजनीति में अपना भविष्य देखते हैं। इनमें से ज़्यादातर युवा मुझे जानते हैं और मैं भी उनकी योग्यताओं से वाकिफ हूँ। इसके अलावा कुछ ऐसे युवा भी हैं, जो राजनीति में सक्रिय तो हैं लेकिन सम्पर्क न होने के चलते वो मेरी सूची में शामिल नहीं हो पाए हैं। ये युवा भी या तो किसी राजनीतिक दल से जुड़े हैं या किसी कार्यकारिणी, आनुसांगिक संगठन, पार्षद, पंचायत राज प्रतिनिधि या प्रदेश स्तर पर पदाधिकारी हैं। मुझे कहते हुए बड़ा दु:ख होता है कि मौजूदा राजनीति में ऐसे युवाओं की ऊर्जा का अपव्यय हो रहा है. मुझे बड़ी तकलीफ होती है जब मैं किसी पढ़े-लिखे, कुशल युवा को सियासी जगह बनाने के लिए मंत्री, विधायक, प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के आगे-पीछे घूमता देखता हूं. इन नौजवानों की चाह होती है कि किसी न किसी तरह उन्हें बस एक 'मौक़ा' मिल जाए. वे तो यह भी समझते हैं कि 'समय' आने पर उनके नेता ज़रूर उनकी सुध लेंगे. इसी चाह में वे साल-दर-साल उनके चक्कर पर चक्कर लगाते रहते हैं. लेकिन अफसोस ! जब 'मौका' और 'समय' आता है तो इसका विपरीत होता है. उनके अपने 'नेता' अपने बेटों, भाई-भतीजों, परिवारवालों और जाति के चहेतों को आगे बढ़ा देते हैं. और.. इसी के साथ बरसों से देखा जा रहा कोई सपना 'छन्न' से टूट जाता है. अब आगे क्या...? यह सवाल और जवाब यह कि फिर एक 'मौक़ा' पाने की लालसा में वही बरसों के 'चक्कर'.
प्यारे नौजवानों ! आप ही बताइये- ये कितना सही है? क्या आपको नहीं लगता कि 'सियासी जगह' बनाने का कोई और विकल्प होना चाहिए? क्या पिछलग्गूपन की राजनीति और नेताओं की हाजिरी बजाना छोड़कर ख़ुद का जनाधार तैयार करना सही नहीं होगा? यह काम आप राजनीतिक दलों में रहते हुए भी कर सकते हैं. आपका जनाधार बना तो राजनीतिक दलों में आपकी पूछ भी स्वतः ही हो जाएगी. अगर युवा नेता अपने क्षेत्र के जनहित के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर लें और समाज को साथ लेकर चले तो उनकी अलग ही साख होगी. तब समाज भी उनका होगा और सियासत भी उनकी. और तो और सार्वजनिक जीवन में काम करने की उन्हें संतुष्टि भी मिलेगी. समय और क्षमताओं का सदुपयोग होगा.
प्यारे युवा साथियों ! पिछलग्गू बनकर राजनीति करने से कुछ भी हासिल नहीं होना है. ये मंत्री, सांसद, विधायक और नेता आपकी क्षमताओं को इंस्ट्रूमेंट के तौर पर इस्तेमाल करके आपको ठेंगा दिखा देंगे. तब आपके पास नाराज़ होकर विरोधी खेमे का हिस्सा बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. ज़रा अभी सोचकर देखिये कि तब आपको क्या हासिल होगा? उस वक्त तो आपको सोचने का भी वक़्त नहीं मिलेगा क्योंकि तब तक आप बहुत कुछ तो खो चुके होंगे. समय, अवसर और अपनी उम्र भी. इसलिए राजनीति कीजिए लेकिन ज़रा संभलकर...
(नोट- युवा नेता जनहित के मुद्दों पर ख़बर अपडेट से सलाह ले सकते हैं.)
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