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20 March 2023 03:07 PM
इस साल के आख़िर में राजस्थान विधान सभा चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक दलों ने इसे लेकर अपनी कमर कसनी शुरु कर दी है। ये दीगर है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों में गुटबाजी अपने चरम पर है। फिलहाल बात राजस्थान बीजेपी की एक दिग्गज नेत्री वसुंधरा राजे की। वसुंधरा राजे और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की खींचतान किसी से छिपी नहीं है। पिछले 5 सालों में बीजेपी आलाकमान ने राजे को पीछे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वहीं राजे ने भी शक्ति और भक्ति प्रदर्शन करके शीर्ष नेतृत्व को यह अहसास करवा दिया कि ठुकराकर मुझको वो मेरा इंतकाम देखेगा. बहरहाल, इस रिपोर्ट में जानेंगें कि वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी के लिए जरूरी है या उसकी मजबूरी।
1. फिलहाल राजस्थान में राजे के टक्कर का नेता नहीं
बीकानेर से 7 बार विधायक रहे कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी कई मर्तबा यह कहते हैं कि कांग्रेस में अशोक गहलोत और राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा राजे सरीखा कोई नेता नहीं है। उनकी इस बात पर कई राजनीतिक पंडित भी सहमति देते हैं और दे भी क्यों नहीं। वजह बेहद साफ है- वसुंधरा राजे का जनाधार। उनके जनाधार की ताक़त को उनकी देव दर्शन यात्राओं में ख़ुद बीजेपी आलाकमान भी देख चुकी है। कुछ ही दिन पहले सालासर में राजे के जन्मदिन पर उमड़ी भीड़ उनके जनाधार की तसदीक करती है। ये और बात है कि बीजेपी राजे की देव दर्शन यात्रा को राजे का निजी दौरा बताती रही है, वहीं राजे भी इसे 'भक्ति प्रदर्शन' कहकर आलाकमान के सामने 'शक्ति प्रदर्शन' कर रही है। राजे से पहले राजस्थान में ऐसा रुआब भैरोंसिंह शेखावत का रहा है लेकिन शेखावत के बाद फिलहाल राजस्थान में राजे के टक्कर का नेता दूर-दूर तक नजर नहीं आता है।
2. बीजेपी की चिंता बढ़ाता अंदरूनी सर्वे
बीजेपी आलाकमान कह चुका है कि राजस्थान में बीजेपी बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किये, नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन कुछ महीने पहले बीजेपी के एक अंदरूनी सर्वे ने एक चौंकाने वाली हकीकत सामने लाकर रख थी। जानकारी के मुताबिक सर्वे में यह बात सामने आई कि वसुंधरा राजे की उपेक्षा करके राजस्थान में जीत पाना बीजेपी के लिये बहुत टेढ़ी खीर होगी। ऐसे में बीजेपी को कहीं न कहीं इस बात का भी डर सताने लगा है कि राजे की उपेक्षा करना उसे भारी न पड़ जाये।
3. जातीय समीकरण
वसुंधरा का ससुराल धौलपुर के जाट राजघराने में रहा है और राजस्थान में क़रीब 12 फीसदी जाट समुदाय है जो एकमुश्त राजे के साथ है। जाट समुदाय राजनैतिक रुप से सबसे मजबूत कौम हैं और इसका सीधा फायदा राजे को मिलता है। ऐसे में राजे को नकारने में बीजेपी को सामने ही नुकसान होता साफ-साफ दिख रहा है।
4. बीजेपी की बढ़ती दुविधा
2 बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे तीसरी बार सूबे की सरदारनी बनना चाह रही है। वो आये दिन अलग-अलग जिलों में जनसभायें करके ख़ुद को प्रदेश के सबसे बड़े नेता के तौर पर पोट्रेट कर रही है ताकि ख़ुद को सीएम का चेहरा घोषित करवा सके। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी नेतृत्व ने भी बीते पांच सालों में वसुंधरा राजे की अनदेखी में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि राजे के धुर-विरोधी जाट नेता सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष तक बना दिया। लेकिन न तो केंद्रीय नेतृत्व राजे का कुछ बिगाड़ पाया और न ही पूनिया वसुंधरा की हैसियत घटा नहीं पाए। अब चूंकि राजस्थान विधानसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है, ऐसे में बीजेपी के लिए दुविधा हौले-हौले बढ़ने लगी है।
5. केन्द्रीय सता को 2024 की फिक्र
राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में राजस्थान में चुनाव जीतना केन्द्र के लिए बेहद जरूरी है। राजस्थान में पिछले सभी चुनावो को देखें तो राजे के नेतत्व में ही BJP को सीटे मिली हैं, ऐसे में राजे को नाराज करना बीजेपी आलाकमान के लिए रिस्की हो सकता है।
तो ये थीं वो 5 बातें, जो बताती हैं कि राजस्थान में वसुंधरा राजे बीजेपी के लिए जितनी मजबूरी है, उतनी ही जरुरी भी है। ऐसे में राजस्थान फतह करने के लिए वसुंधरा राजे को नकारना बीजेपी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
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