हेम शर्मा, प्रधान संपादक
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18 September 2022 08:49 PM
माननीय सांसद महोदय !
आपकी इंडोनेशिया यात्रा कैसी रही? आपकी फेसबुक वॉल पर वहां की 'सांस्कृतिक संध्या' की तसवीरें देखीं, ख़ूब रंगों से सराबोर थीं। वैसे, इन दिनों हमारे बीकानेर ('आपके' भी !) की एक तसवीर भी सुर्खियों में है। यह तसवीर इंडोनेशिया जितनी 'ख़ूबसूरत' तो नहीं है लेकिन 'बदसूरत' इतनी है कि देखकर ही शर्मिंदा हो जाएं। इस तसवीर में कमोबेश हज़ार गायों के शव छितरे पड़े हैं। उम्मीद करते हैं कि 'अपने संसदीय क्षेत्र' की यह 'तसवीर' आपने भी देख होगी। अरे हां, आपने तो देखी ही है, तभी तो इसे अपनी फेसबुक वॉल पर भी शेयर किया था और राज्य सरकार को उसकी जिम्मेदारी भी याद दिलाई थी कि
"राजस्थान में गौवंश में फैली लंपी स्किन बीमारी के कारण हज़ारों गोवंश की मौत चिंता का विषय है। ऐसे सवेंदनशील (संवेदनशील) मामले में कांग्रेस सरकार की उदासीनता बेहद निंदनीय व प्रदेश को शर्मसार करने वाली है। सरकार विषय को गंभीरता से लेकर गौवंश को बचाने हेतु आवश्यक कदम उठाए (उठाएं)।"
केंद्रीय राज्यमंत्री मेघवाल जी ! जितनी कमी यहां 'संवेदनशील' की सही स्पेलिंग की है, उतनी ही कमी इस विषय पर गंभीरता की भी है। आपने राज्य सरकार को तो विषय की 'गंभीरता' समझा दी और गौवंश को बचाने हेतु आवश्यक 'कदम' उठाने की बात तो कह दी। लेकिन लंपी से निजात दिलाने के लिए आपने क्या 'गंभीरता' दिखाई? आपने क्या आवश्यक 'क़दम' उठाए? क्या सारी जिम्मेदारी सिर्फ राज्य सरकार की ही है? आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं? सांसद साहब ! आपके संसदीय क्षेत्र की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा जताते हुए आपको इसलिए वोट दिये थे कि संकट के समय आप 'अपने' संसदीय क्षेत्र की सुध लें। इसलिए नहीं कि प्रकोप के बीच विदेश चले जाएं और राज्य सरकार पर सारी जिम्मेदारी उंडेल दें।
यही सवाल बीकानेर की जनता दूसरे मंत्रियों- डॉ. बी.डी. कल्ला, भंवर सिंह भाटी, गोविंद मेघवाल से भी कर रही है कि
"आपके प्रतिनिधित्व वाले बीकानेर में हर रोज़ इतनी गायें मर रही हैं, आप लोग कहां है? क्या कर रहे हैं? जनता ने बीकानेर में जगह-जगह लंपी रोग गौ सेवा केंद्र खोल रखे हैं, जहां सैंकड़ों लोग नि:स्वार्थ भाव से दिन-रात गायों की सेवा कर रहे हैं, उन्हें इम्यूनिटी बढ़ाने वाले लड्डू और लापसी खिला रहे हैं, उनके घावों पर मरहम-पट्टी कर रहे हैं। और आप हमारे जनप्रतिनिधिगण क्या कर रहे हैं? सिर्फ बयानबाज़ी? आरोप-प्रत्यारोप? क्या आपने किसी सेवा केंद्र पर जाकर गौ-सेवा की? सेवादारों का उत्साह बढ़ाया? आपने क्या भूमिका निभाई ? क्या संकट की घड़ी में मंत्रियों को कुछ नहीं करना नहीं होता है? कोरोना को छोड़िये, क्या लंपी में भी आप फकत बयान ही देंगे? क्या ऐसा करने भर से गायें ठीक हो जांएंगी? नहीं न ! याद रखिएगा -ये वहीं गायें हैं, जिन्हें हम 'गाय माता' का दर्जा देते हैं। ये वही 'गायें' हैं, जिनके नाम पर सियासत होती है। ये वही 'गायें' हैं, जो चुनावी मुद्दा बनती है, और ये वही 'गायें' हैं, जो आपके और हमारे बच्चों को दूध पिलाती है। क्या इस बेजुबान की 'आह' आपको सुनाई नहीं देती?"
माननीय मंत्रीगण ! किसी दिन अपने व्यस्ततम शेड्यूल से थोड़ा सा समय निकालकर बीकानेर की गलियां घूम आइये। जहां आपको छोटे-छोटे बच्चे गुल्लक थामे गायों के लिए चंदा इकट्ठा करते नज़र आ जाएंगे। कुछ युवक विनम्रता से यह कहते मिल जाएंगे कि "भाईजी ! गायां माथै काळ आयौ है, जित्ती हो सके, मदद करौ।" ये वही सेवाभागी लोग हैं, जो चंदा मांगकर धनराशि इकट्ठी करते हैं और गायों के लिए आयुर्वेदिक लड्डू बनाने का सामान खरीदते हैं। घरों में गायों के लिए प्रार्थनाएं होने लगी है कि "जै..जै.. गायों को ठीक कर दीजिए।" सब अपने-अपने सामर्थ्य से कुछ न कुछ कर ही रहे हैं, फिर आप लोग तो सामर्थ्यवान हैं। बेशक ! आप सब संवेदनशील इंसान होंगे, लेकिन विपत्ति में ही इंसान की असल परख होती है। कुछ करना है तो इन गायों को मरने से बचाइये, लंपी के दौरान इन बेजुबानों को सियासत से दूर रखिये। बाक़ी इन आरोपों में क्या रखा है? राजनीतिक जीवन में आरोप लगाने के आपको कई मौक़े मिल जाएंगे।
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