हेम शर्मा, प्रधान संपादक
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16 May 2022 11:14 AM
आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में बीकानेर के रविंद्र रंगमंच में 'पूर्वोत्तर राष्ट्रीय नाट्य समारोह-2022' का आयोजन किया गया. लेकिन अफसोस ! इस कार्यक्रम को न तो केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने तवज्जो दी, न ज़िला कलेक्टर ने और न ही जनता ने। बिना अतिथियों के ही पांच दिवसीय राष्ट्रीय समारोह का उद्घाटन नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक प्रो. रमेश चंद्र, लोकायन के महावीर स्वामी, रंगकर्मी दीन दयाल, निदेशक रबीजिता गोगोई और अन्य लोगों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. हां, इस कार्यक्रम को लेकर जो सबसे ज्यादा गंभीर दिखे, तो वे थे- कलाकार. पहले दिन नाटक 'एंटीगन मेनिया' की नाट्य कला के विभिन्न अभिव्यक्तियों के साथ शानदार प्रस्तुति दी. क्या तो अभिनय और क्या ही भाव-भंगिमाएं, हर दृश्य के बाद 'वाह-वाह' करने को दिल करने लगे। लेकिन हाय री किस्मत ! वाह-वाह करने के लिए ठीक-ठाक संख्या में दर्शक तो मौजूद हों. आयोजक और नाट्य विधा से जुड़े कुछ लोगों के अलावा वहां तो गिनती के दर्शक आए थे। न तो मुख्य अतिथि- केंद्रीय संस्कृति एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री- अर्जुनराम मेघवाल आए थे और न ही सम्मानित अतिथि- ज़िला कलेक्टर भगवती प्रसाद. हां, हॉर्डिंग में ज़रूर बड़े-बड़े अक्षरों में उनके नाम चस्पा थे. मंच पर भी उनके अतिथि होने के शानदार बोर्ड चमक-दमक रहे थे. लेकिन... खैर, बेचारे कलाकारों ने मुट्ठीभर दर्शकों से ही संतोष किया. मंच से मुस्कुराए, हाथ जोड़े और नाटक का समापन किया. नाटक तो समाप्त हो गया लेकिन अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया, मसलन-
पहला सवाल- आजादी के अमृत महोत्सव के इस बड़े कार्यक्रम में अतिथियों का ही नहीं पहुंचना, क्या इस कार्यक्रम की अनदेखी करना नहीं है?
दूसरा सवाल- क्या ऐसा करना बीकानेर में 'आजादी के अमृत महोत्सव' की उपादेयता पर प्रश्न-चिन्ह लगाने जैसा नहीं है?
तीसरा सवाल-अतिथियों द्वारा इस कार्यक्रम में आने की स्वीकृति देने के बावजूद उनका न आना, क्या उनकी जिम्मेदारी पर सवाल नहीं उठाता?
चौथा सवाल- क्या अतिथियों की अनुपस्थिति को आजादी के अमृत महोत्सव, राष्ट्रीय नाट्य कला और संस्कृति और नाट्य विधा का अपमान न समझा जाए?
ये वो सवाल हैं, जो अतिथियों से इसलिए भी पूछे जाने चाहिए क्योंकि इससे समाज में अच्छा संदेश नहीं जाता. जनता, ऐसे संदेशों से ही धारणाएं बुनती हैं। आप ख़ुद ही सोचिए कि कलाकार, नाट्य विधा से जुड़े लोग और अव्वल तो जनता आपके बारे में क्या धारणा बनाएगी? क्या अतिथियों के आने से इस कार्यक्रम में जान नहीं आ जाती? क्या तालियों की गड़गड़ाहट से रविंद्र रंगमंच न गूंज उठता? क्या इससे कलाकारों का सीना चौड़ा न होता? मगर ये हो न सका.. ये हो न सका और रविंद्र मंच कमोबेश खाली ही रहा। हालत यह हो गई कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक प्रो. रमेश चंद्र गौड़ को अपील करनी पड़ गई कि पांच दिवसीय कार्यक्रम में राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत को जानने के लिए दर्शकों को बुलाने का यत्न किया जाए। उन्होंने मीडिया से अपील कि इस आयोजन के महत्व को प्रचारित करे। आह ! इससे बड़ी विडंबना क्या ही होगी?
इतना ही नहीं, केंद्र सरकार के घोषित कार्यक्रम में राजस्थान सरकार के अधिकारियों का रवैया भी कुछ ऐसा ही रहा। श्रीमान् केंद्रीय मंत्री और श्रीमान् ज़िला कलेक्टर को आत्मचिंतन तो करना ही चाहिए कि उनकी अनुपस्थिति से समाज और इस विधा को कोई क्षति तो नहीं हो रही है? आपको यह बात शायद कोई कहे न कहें लेकिन एक जिम्मेदार मीडिया होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी तो बनती ही है.
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