सुमित शर्मा, संपादक
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29 November 2020 01:59 PM
देश की राजधानी दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन की हैं. दावा किया जा रहा है कि इस आंदोलन को क़रीब 500 संगठनों का साथ मिला है और यूपी, पंजाब और हरियाणा के क़रीब 1 लाख किसान महीनेभर के राशन के साथ दिल्ली की सड़कों पर इकट्ठा हो रहे हैं.इन राज्यों में सरकार को मंडियों से काफी ज्यादा मात्रा में राजस्व की प्राप्ति होती है. इन किसानों को रोकने के लिए पुलिस बेरिकैड लगा रही है, आंसू गैस के गोले छोड़ रही है, इस ठंड में किसानों पर पानी की बौछारें कर रही हैं.. पुलिस का कहना है कि हम आपको यहां प्रदर्शन नहीं करने देंगे और किसानों का कहना है कि आप हमें जहां रोकेंगे, हम वहीं बैठकर-लेटकर सरकार के खिलाफ़ प्रदर्शन करेंगे.
सबसे पहले हमें ये जानना होगा कि आखिर इस आंदोलन के पीछे की वजह क्या है? दोस्तों, इस आंदोलन के पीछे की वजह 3 कानून को बताया जा रहा है. जिनकी वजह से किसानों को डर है कि उनका MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाएगा. उनकी फसलों का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाएगा. साथ ही उनसे उनके कई अधिकार छीन लिए जाएंगे. आइये, अब ये समझ लेते हैं कि आखिर ये 3 कानून कौनसे हैं?
पहला कानून- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
दूसरा कानून- कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
तीसरा कानून- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
ये तीनों ही क़ानून संसद के दोनों सदनों से पारित होकर कानून बन चुके हैं. किसान इन्हीं तीनों कानून को वापस लेने की मांग पर आंदोलन कर रहे हैं. आइये, अब बारी-बारी से इन पर बात करते हैं.
पहला कानून- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020- इस कानून का उद्देश्य- APMC द्वारा विनिमित मंडियो के बाहर फसलों की बिक्री की अनुमति देना है. इस कानून के तहत किसानों को मंडी के बाहर भी अपनी फसल बेचने की आजादी होगी. मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी कम किया जाएगा. इससे राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा मिलेगा.
जबकि सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांधने का काम किया है. (APMC) यानी एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी के स्वामित्व वाली मंडियों को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं.
इस कानून को लेकर किसानों का क्या कहना है?- किसानों का कहना है कि इससे MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का सिस्टम ही खत्म हो जाएगा. धीरे-धीरे मंडिया खत्म हो जाएगी. ई-नाम जैसे सरकारी पोर्टल का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा. और इस कानून के कराण किसान पूरी तरह से कारोबारियों के हवाले हो जाएगा. कारोबारी जो रेट तय करेगे, किसान को उस पर रेट पर फसल बेचनी पड़ेगी.
इस कानून को लेकर सरकार का क्या कहना है?- वहीं सरकार का कहना है कि इस कानून से न तो एमएसपी पर कोई फर्क पडेगा और न ही मंडियों को बंद नहीं होने दिया जाएगा. लेकिन ये बात सरकार सिर्फ अपने बयान में ही कह रही है, नए कानून में इसे नहीं जोड़ा गया है. इसी के चलते किसानों में भारी असमंजस और असंतोष बना हुआ है.
दूसरा कानून- कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020- इस कानून के तहत एग्रीकल्चर एग्रीमेंट पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। ये कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्म, प्रोसेसर्स, थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ता है। इसके साथ किसानों को क्वालिटी वाले बीज की आपूर्ति करना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, कर्ज की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा देने की बात इस कानून में है। आसान भाषा में कहें तो इस कानून का उद्देश्य कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को मंजूरी देना है. यानी आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा.
इस कानून को लेकर किसानों का क्या कहना है?- किसानों का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट या एग्रीमेंट करने से किसानों का पक्ष कमजोर होगा। वो फसल की कीमत तय नहीं कर पाएंगे। विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियां फायदा उठाने की कोशिशि करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी. किसान कानून के भारी भरकम शब्द नहीं समझता लेकिन वो ये जानता है कि उसकी जमीन उसकी मां है, जिसे वो किसी और के हाथों बर्बाद नहीं देगा.
इस कानून को लेकर सरकार का क्या कहना है?-सरकार का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट करना है या नहीं, इसमें किसान को पूरी आजादी रहेगी। वो अपनी इच्छा से दाम तय कर फसल बेच सकेंगे। देश में 10 हजार FPO बन रहे हैं। ये FPO छोटे किसानों को जोड़कर फसल को बाजार में सही कीमत दिलाने का काम करेंगे। विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी जाने की जरूरत नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद निपटाया जाएगा।
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान है। यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से हटाई जाएंगी जिससे युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी.
इस कानून को लेकर किसानों का क्या कहना है?- किसानों को डर है कि इस कानून के चलते बड़ी कंपनियां और बड़े किसान जमाखोरी करने लगेंगे। इससे कालाबाजारी बढ़ सकती है।
इस कानून को लेकर सरकार का क्या कहना है?- सरकार का कहना है कि इस कानून के चलते किसान की फसल खराब होने की आंशका दूर होगी। वह आलू-प्याज जैसी फसलें बेफिक्र होकर उगा सकेगा। एक सीमा से ज्यादा कीमतें बढ़ने पर सरकार के पास उस पर काबू करने की शक्तियां तो रहेंगी ही। लेकिन किसानों को सरकार के ये तीनों ही कानून समझ में नहीं आ रहे. किसान कह रहे हैं कि सरकार तो बंद कमरों में कानून बना लेती हैं लेकिन हम तो किसान हैं, हमें उसके हकीकत की जमीन मालूम हैं.उनका मानना है कि इन तीनों नए कानूनों से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा. इसलिए आंदोलनकारी किसान 1 महीने के राशन के साथ दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं. अभी तक जो पता चला है, उसके मुताबिक सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं लेने वाली। सरकार का दावा है कि इन कानूनों का पास होना एक ऐतिहासिक फैसला है और इससे किसानों की जिंदगी बदल जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने इन कानूनों को आजादी के बाद किसानों का एक नई आजादी देने वाला बताया है। मोदी का कहना है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा नहीं मिलने की बात गलत है।
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