हेम शर्मा, प्रधान संपादक
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05 May 2021 12:05 PM
बीकानेर । वैसे तो यह ज़िलाधिकारी का काम ही होता है कि वो अपने ज़िले का पूरा ख़याल रखे लेकिन कोरोना काल में कलक्टर नमित मेहता के प्रबन्धन की दिल खोलकर तारीफ़ें हो रही हैं. तारीफ़ें ये कि "वो कड़ी निगरानी और समर्पण के भाव से ज़िले की सेवा में जुटे हैं." ऐसी रिपोर्ट सीएमओ में भी दी गई है.
अक्सर सीएमओ में कोविड प्रबन्धन को लेकर कलक्टर, प्रशासन-पुलिस और डॉक्टर्स की शिकायतें होती हैं. लेकिन हाल ही जब लालेश्वर महादेव के अधिष्ठाता संवित् सोमगिरि जी कोरोना पॉजीटिव हुए तो सीएमओ से उनके स्वास्थ्य की पूरी रिपोर्ट ली गई. जिसमें हर घण्टे की स्वास्थ्य रिपोर्ट मांगी गई. सीएमओ को महाराज के स्वास्थ्य से अवगत करवाया गया. जिसमें यह बताया गया कि "बीकानेर के कलक्टर नमित मेहता कोविड प्रबन्धन की कड़ी निगरानी और बेहतर व्यवस्था कर रहे हैं."
अब सवाल उठता है कि क्या वाकई कलक्टर, उनके अधीनस्थ और डॉक्टर्स उपलब्ध संसाधनों और कठिन हालातों में अच्छा काम कर रहे हैं या लोग अपने स्वार्थ के लिए झूठी प्रशंसा कर रहे हैं ? इसके आकलन की ज़रुरत है. लेकिन आकलन कैसे हो? तो इसके 2 आधार हो सकते हैं. पहला-पिछले कलक्टर द्वारा इन्हीं हालातों में किए गए काम और दूसरा- प्रभावित लोगों की सन्तुष्टि. दोनों की तुलना करेंगे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. वैसे ये पब्लिक, सब जानती ही है.
कलक्टर नमित मेहता की कड़ी निगरानी है. वो ख़ुद लगे रहते हैं. फकत दफ्तर में बैठकर निर्देशों से काम नहीं चलाते. संवेदनशीलता, निष्ठा और समर्पण दिख ही जाता है, किसी को कुछ बताने की ज़रुरत नहीं होती. नहीं तो कोई ये बताये कि इस बार पिछले कलक्टर के कार्यकाल के दौरान तथाकथित संघ और समाज सेवी कहां ग़ायब हैं ? पूछा जाए कि "क्या वे लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए समाज सेवा की आड़ ले रहे थे? इस कलक्टर ने दाल नहीं गलने दी या वाकई कोविड की दूसरी लहर में समाज सेवा की दरकार नहीं है?" हकीकत तो यह है कि ये 'सेवा' भी कई संगठनों और समाज सेवियों के लिए व्यवसाय या अपनी पूछ बनाने का जरिया है. नहीं तो वाकई में ज़रुरतमंद सहयोग को नहीं तरसते होते. सेवा करनी है तो वाकई में सेवा कीजिए, अभियान चलाकर राजनीतिक फायदा मत लीजिए.
बहरहाल, अच्छे कामों और सेवा की सराहना हो, यह अच्छी बात है लेकिन मेहता की तरह कितने अधिकारी और लोग ऐसा कर पाते हैं? यह सोचने वाली बात है. अमूमन अधिकारी सरकारी निर्देशों की औपचारिकताओं की उधेड़बुन में रहते हैं. ऐसे में कोई निष्ठा से काम करेगा तो उसकी तारीफ़ ही होगी न. भला तो भला ही कहलाएगा चाहे नमित मेहता हो या और कोई...
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