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14 October 2021 02:57 PM
सभी अख़बार, टीवी चैनल्स चीख-चीखकर, घूम-फिरकर एक ही बात कह रहे हैं, वो ये कि देश 'बिजली संकट' से जूझ रहा है. कोयले की कमी के चलते देश बिजली संकट की दहलीज पर खड़ा है. देश के कई थर्मल पावर प्लांट के पास महज एक दिन का कोयला बचा है. लिहाजा कई राज्यों में बिजली की कटौती होने लगी है. खैर, जो बातें सब बता चुके हैं, मैं आपको वो बताने के लिए नहीं आया हूं. बल्कि वो बताने जा रहा हूं, जो आपसे छिपाई गईं या जिस पर किसी का ध्यान ही नहीं गया. मसलन- भारत, जो कि कोयला उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, वहां कोयले की अचानक किल्लत क्यों होने लगी? कोयले की कमी पर सरकार के अलावा विपक्ष का क्या कहना है? कोयले की इस कमी के पीछे असली कौन ज़िम्मेदार है? क्या कोयला संकट जानबूझकर बनाया गया है? और आख़िरी सवाल, जो आपको सोचने को मज़बूर कर देगा, वो ये कि देश में बत्ती गुल होने से अडानी कैसे पावरफुल हो रहे हैं? आइये, इन सभी सवालों पर तथ्यों के विस्तार से बात करते हैं.
सबसे पहले बात करते हैं- देश में छाया ये 'कोयला संकट' क्या है?
आपको बता दें कि कोयला उत्पादन में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. ग्लोबल एनर्जी स्टेटिस्टिकल इयरबुक 2021 के मुताबिक कोयला उत्पादन में चीन सबसे आगे है। जो हर साल 3,743 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करता है। वहीं, भारत हर साल 779 मिलियन टन कोयले का उत्पादन कर दूसरे नंबर पर है। बावजूद इसके, भारत को अपनी जरूरत पूरी करने के लिए क़रीब 25 फीसदी कोयला दूसरे देशों से मंगाना पड़ता है। इसके पीछे की वजह कोयले की क्वालिटी बताई जा रही है. भारत में पैदा होने वाली 70 फीसदी बिजली थर्मल पावर प्लांट से आती है। कुल पावर प्लांट में से 137 पावर प्लांट कोयले से चलते हैं, इनमें से 7 अक्टूबर 2021 तक 72 पावर प्लांट में 3 दिन का कोयला बचा है। अब बात करते हैं कि देश में अचानक कोयले की कमी क्यों हो गई? तो दोस्तों, आज से 10-15 दिन पहले तक आपने देश में कोयले की कमी की कोई ख़बर न तो देखी होगी और न सुनी होगी. लेकिन अचानक ऐसा क्या हो गया कि देश में कोयले की किल्लत हो गई. एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद इंडस्ट्रीज तेज़ी से खुली हैं, इससे बिजली की डिमांड भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ी है. लेकिन यहां एक सवाल यह उठता है कि लॉकडाउन के दौरान, इंडस्ट्रीज के बंद रहने से कोयले की बचत भी तो हुई थी, तो वो कोयला कहां गया. क्या इसका किसी के पास कोई जवाब है? खैर, इसके अलावा कुछ लोगों का कहना है कि भारत में मानसून के देरी से लौटने की वजह से खदानों में पानी भर गया, जिसके कारण इन खदानों से कोयले का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। वहीं कुछ लोगो कोयला इंडस्ट्री में मैनेजमेंट और मैन पावर की कमी को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
आइये, अब जानते हैं कि कोयले की कमी पर सरकार और विपक्ष का क्या कहना है?
कोयले की कमी को लेकर 2 अलग-अलग मत आ रहे हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि हमारे पास प्लांट्स को आपूर्ति के लिए कोयले का पर्याप्त स्टॉक है। हां, कोयले की थोड़ी-बहुत कमी जरूर है, जिसे धीरे-धीरे दूर कर लिया जाएगा. वहीं राज्य सरकारें कोयले की जबरदस्त कमी की शिकायत कर रही हैं. जिनमें राजस्थान, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के नाम शामिल हैं. इन राज्यों में बिजली कटौती भी जारी हैं. वहीं एक्टिविस्ट और कोल सेक्टर के जानकार सुदीप श्रीवास्तव के मुताबिक कोयले की कमी से सम्बंधित खबरें एक साजिश का हिस्सा हैं। सुदीप श्रीवास्तव ने आशंका जताई है कि
"कोयले की कमी का माहौल बनाकर Coal Bearing Areas Acquisition and Development Act, 1957 में संशोधन किया जा सकता है जिसका सीधा लाभ प्राइवेट सेक्टर को होगा। हकीकत तो यह है कि अप्रैल 2021 से सितंबर 2021 की अवधि में कैप्टिव कोल माइन्स का उत्पादन भी बढ़ा है। इसके बाद भी देश के पॉवर प्लांट्स में कोयला क्यों नहीं पहुंच रहा है? यह कोई गेम प्लान का हिस्सा है जिससे भविष्य में और अधिक कोल ब्लॉक की ज़रूरत का नैरेटिव तैयार किया जा सके."
सुदीप श्रीवास्तव ने कोल इंडिया लिमिटेड और एससीसीएल का डेटा भी दिया और ट्वीट किया कि अप्रैल 2021 से सितंबर 2021 की अवधि में कोल इंडिया लिमिटेड के उत्पादन में 5.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। बीते साल 236 मिलियन टन की तुलना में इस बार 249.8 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ है। वहीं एक अन्य पीएसयू एससीसीएल में भी बीते साल 18 मिलियन टन की तुलना में 30 मिलियन टन उत्पादन हुआ है । इसके बाद भी सरकार द्वारा कोयले की कमी की बात कहना आश्चर्यजनक है.
इसके अलावा उन्होंने यह भी ट्वीट किया कि
"हाल ही ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे आपूर्ति अचानक बढ़ गई हो और कोयले का संकट आ गया हो. देश में बिजली की अधिकतम मांग 2 लाख मेगावाट से ज्यादा नहीं होती। यह मांग भी केवल कुछ दिन ही रहती है। अगर देश में प्रतिदिन बिजली की औसत मांग की बात की जाये तो ये करीब 1.50 लाख मेगा वाट ही रहती है। इसमें से थर्मल पॉवर प्लांट से बिजली के उत्पादन की जरुरत करीब 1 लाख मेगा वाट ही है। जिसके लिए साल भर में 500 मिलियन टन कोयले की उत्पादन जरूरी है और सिर्फ कोल इंडिया लिमिटेड ही साल भर में 600 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करता है। उधर आप सांसद संजय सिंह का सीधा आरोप है कि कोयले का यह संकट अडानी के फायदे के लिए बनाया गया है."
अब ज़रा भारत की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी कोल इंडिया का भी कोयला संकट पर दावा जान लीजिये. मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि
"इस संकट के लिए थर्मल पावर प्लांट्स जिम्मेदार हैं. अगस्त के बाद से कोयले के स्टॉक में गिरावट आई, क्योंकि पावर यूटिलिटी ने ऐसा होने दिया. मामला संबंधित अधिकारियों को भेजा गया था."
कोयले की इस कमी के पीछे कौन ज़िम्मेदार है?
ये सवाल बहुत लाजिम है कि देश में अचानक कोयले संकट जैसे हालात बने ही क्यों? कोयले की किल्लत के लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराया हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकारों पर कोल इंडिया के क़रीब 20 हज़ार करोड़ रुपये बकाया है. जिसमें महाराष्ट्र पर 3176.1 करोड़, उत्तर प्रदेश पर 2743.1 करोड़, पश्चिम बंगाल 1958.6 करोड़, तमिलनाडु पर 1281.7 करोड़, राजस्थान पर 774 करोड़ रुपये बकाया है. कोयला मंत्रालय ने चार राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान को पत्र लिखकर बकाया अदा करने को कहा है। कोयला मंत्रालय ने ये तक कह दिया है कि
वे राज्यों को जनवरी से पत्र लिखकर स्टॉक लेने के लिए कह रहा था, लेकिन राज्यों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बकाये के बावजूद राज्यों को कोयले की आपूर्ति लगातार की गई है। कोयला मंत्रालय ने बताया है कि झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के पास भी कायले की खदानें हैं, लेकिन इन राज्यों ने बहुत कम मात्रा में खनन किया या नहीं किया।
अब एक सवाल बहुत अहम सवाल कि देश में बत्ती गुल होने से अडानी कैसे पावरफुल हो रहे हैं?
ख़बरों के मुताबिक, दरअसल देश में आयात होने वाला कोयले का काफी हिस्सा अडानी के मुंद्रा पोर्ट से होकर आता है. जिसके एवज में सरकार को उन्हें भुगतान करना होता है. कोयला संकट के इस दौर में जितना ज्यादा कोयला, उतना ही ज्यादा भुगतान.. इसके अलावा अडानी के पास ऐसे कुछ संयंत्र हैं, जो आयातित कोयले से बिजली का उत्पादन करते हैं। प्रावधानों में हालिया बदलाव से ऐसे संयंत्र अब सीधे एक्सचेंज पर बिजली बेच सकेंगे। इसलिए देश में बत्ती गुल, और अडानी हो रहे पावरफुल.
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