कृष्णा आचार्य, लेखिका
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08 November 2020 01:42 PM
कोरोना ने पूरी दुनिया को तहस-नहस कर दिया है. हर तरफ कोहराम सा मचा है. दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यस्था गर्त में जा रही है. भारत कोरोना संक्रमितों के मामले में दुनिया का दूसरा देश बन चुका है. देश की अर्थव्यवस्था के तो हाल न ही पूछो तो बेहतर. कुछ ऐसे हाल-ए-जहां कर दिया है इस कम्बख्त कोरोना ने. इसी बीच भारत का सबसे बड़ा त्योहार दीपोत्सव भी आ गया है. लेकिन उलझन ये कि इस मायूस माहौल में भला कोई कैसे उत्सव मनाए? काम-धंधे मंदे पड़े हैं, जेबें खाली हैं, पटाखे बैन हैं, मिठाइयां मुंह चिढ़ाती हैं, दिलो-दिमाग़ हताश और निराश बैठे हैं. लेकिन हम भारतीय भी न ! ख़ुश होने का बहाना ढूंढ ही लेते हैं. त्योहार के तो नाम से जेहन में खु़शियां उमड़ने लगती है. इसलिए इस बार दीपावली को भी कुछ ख़ास अंदाज़ में मनाने की ठानी है. इस बार ऐसी दीपावली मनाएंगे, जैसी सदियों में एक बार मनती है.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र जी जब 14 बरस के वनवास के बाद लौटे, तो लोगों ने ख़ुशियों के दिए जलाए थे. तब कहां किसी ने पटाखे चलाए थे? कहां किसी चाइनीज लाइटों से घरों को सजाया था? कहां किसी ने दिखावे की दीपावली मनाई थी? इस बार भी भगवान ने हमें वैसा ही मौका दिया है. सरकारों ने प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए पटाखे बैन कर दिए, चीन की गुस्ताखियों के चलते चाइनीज चीजें बैन कर दी. कोरोना महामारी ने शो-ऑफ को खत्म कर दिया. पीछे बचा तो वही नैसर्गिकपन.
तो आइये,इस बार इसी नैसर्गिकपन के साथ दिवाली मनाते हैं, आइये, घरों में घी के दीये जलाते हैं, आइये, किसी कुम्हार का आशीर्वाद पाते हैं, आइये, नकारात्मकता को दूर भगाते हैं, सकारात्मकता को पास बुलाते हैं, आइये, इस बार इको-फ्रेंडली दीपावली मनाते हैं. क्योंकि ऐसी दिवाली बार-बार नहीं आती बल्कि सदियों में एक बार आती है.
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