सुमित शर्मा, संपादक
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30 November 2020 01:17 PM
साल 1985 की बात रही होगी. तब विश्व हिंदू परिषद की 'गंगाजल यात्रा' ख़ूब सुर्खियां में आई थीं. लेकिन इस यात्रा से भी ज्यादा, जिस महिला ने इसमें हिस्सा लेकर सुर्खियां बटोरीं, उनका नाम था- किरण माहेश्वरी. उस वक़्त उनकी उम्र सिर्फ 24 साल थी. किसे मालूम था कि यह महिला एक दिन राजस्थान की राजनीति का इतना बड़ा हस्ताक्षर बन जाएगी कि विधायक और उच्च शिक्षा मंत्री जैसे ओहदे भी उनके सामने छोटे पड़ जाएंगे.
किरण माहेश्वरी का जन्म 29 अक्टूबर 1961 को मध्यप्रदेश के रतलाम में हुआ था. उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय, केटरिंग कॉलेज, दादर, मुंबई और आईआईसीटी-उदयपुर से अपनी तालीम पूरी की.साल 1981 में उन्होंने सत्यनारायण माहेश्वरी से विवाह किया. माहेश्वरी दंपति के एक बेटा और एक बेटी हैं. भले ही किरण माहेश्वरी गृहस्थी में रम गई थीं लेकिन सियासत उनकी रगों से उफान मार रही थी. जो पहले सामाजिक कार्यकर्ता और फिर एक सियासतदां के तौर पर जमाने के सामने आना चाहती थी. इसी कड़ी में किरण माहेश्वरी अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा, भारत विकास परिषद, मृगेंद्र भारती, वैश्य महासम्मेलन, इंडियन लायंस परिसंघ और सावरकर स्मृति जैसे कई संगठनों में सक्रिय रहीं. साल 1985 में उन्होंने वीएचपी की 'गंगाजल यात्रा' से सियासत में क़दम रखे और 1989 में राम जन्मभूमि मुद्दे से उन्होंने महिला जागृति के क्षेत्र में पहचान कायम कर लीं.
साल 1992 में अयोध्या कार सेवा और साल 1993 में दिल्ली रैली से वो सबकी नज़रों में छा चुकी थीं. नतीजतन साल 1994 में उन्हें उदयपुर नगर परिषद की सभापति के तौर पर चुना गया. 1994 में ही किरण माहेश्वरी ने नारी-सशक्तिकरण के लिए महिला सहकारी बैंक की स्थापना की और यह बैंक महिला मुक्ति का अग्रणी संगठन बना. किरण माहेश्वरी तेज़ी से सियासी सीढ़ियां चढ़ रही थीं.
एक सशक्त महिला नेत्री के तौर पर किरण माहेश्वरी ने ख़ूब पहचान बनाई. कई लड़ाइयां लड़ीं और जीतती गईं. लेकिन 30 नवंबर 2020 को बीजेपी की दिग्गज नेत्री किरण माहेश्वरी कोरोना वायरस से जिंदगी की जंग हार गई. 59 साल की उम्र में इस अदृश्य कोरोना ने दुनिया से उन्हें छीन लिया. उनके सियासी सफरनामे को कभी भूलाया नहीं जा सकेगा.
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