हेम शर्मा, प्रधान संपादक
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09 November 2020 05:42 PM
बीकानेर। पंचायती राज चुनावों का बिगुल बज चुका है। जिला परिषद व पंचायत समिति चुनाव में केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के बेटे रवि शेखर को बीजेपी की ओर से प्रत्याशी बनाया गया है। रवि के प्रत्याशी बनने के साथ ही चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो गया है। चर्चाएं ये कि "मंत्री जी ने यह क्या कर दिया? बेटे को जिला परिषद में प्रत्याशी बनाकर उन्होंने ख़ुद की राजनीतिक साख दांव पर लगा डाली." अब सवाल यह उठता है कि भला वो कैसे? तो इसका जवाब इन बिंदुओं से समझने की कोशिश करते हैं-
पहला- मंत्री ने अपने बेटे को ज़िला परिषद की टिकट क्यों दिलाई?
भले ही यह एससी के लिए आरक्षित सीट हो लेकिन मंत्री मेघवाल के बेटे रविशेखर को इस सीट से प्रत्याशी बनाना कई लोगों को सुहा नहीं रहा। वो पूछ रहे हैं कि क्या यह राजनीति में भाई-भतीजावाद की पराकाष्ठा नहीं है? कुछ का तर्क है कि केन्द्रीय मंत्री अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए बेटे को स्थापित करने की जुगत में जुटे हैं. लोगों का क्या, उनका तो काम ही है कहना ! वो तो लगातार पूछे जा रहे हैं कि मेघवाल ने अपने बेटे को ही जिला परिषद की टिकट क्यों दिलाई? सवाल जितना तल्ख है, उतना ही मेघवाल की साख पर सवाल भी उठाता है।
दूसरा- मेघवाल मतदाताओं को अपने पक्ष में कैसे करेंगे?
जिला परिषद सदस्य चुने जाने की डगर थोड़ी कठिन है। इसके लिए गोविंद चौहान और डॉ विश्वनाथ से सबका पाला पड़ना हैं। इससे निकलना आसान नहीं है। आगे की डगर तो और कंटकाकीर्ण है। वैसे केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल जनता के बीच से उठे व्यक्ति हैं। वे आमजन की पीड़ाओं को भुगतकर आगे बढ़े हैं। व्यवहार की शालीनता, जनहित के मुद्दों के प्रति सजगता उनके व्यवहार का हिस्सा है। समन्वय ओर व्यवहार कुशलता उनकी विशेषता है। केंद्रीय मंत्री के रुप में वे उचित भूमिका निभा रहे हैं। पार्टी में उनकी अपनी पैठ है। लेकिन अफसोस ! इतना सब होने के बावजूद वे धरातल पर अपनी राजनीतिक पैठ नहीं बना पाए है। उनकी राजनीतिक पैठ का अगर किसी ने जमकर फायदा उठाया है तो उनकी पार्टी से जुड़े नज़दीकी लोगों ने, जो उनके मार्फत खुद को स्थापित करने में जुटे हुए हैं। ऐसे में सोचने वाली मेघवाल मतदाताओं को अपने पक्ष में कैसे करेंगे?
तीसरा- आभामंडल कितना काम आएगा?
भाजपा में मंत्री के लिए मैदान खुला पड़ा है कोई गोलची या प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं, ऐसे में वो चाहें, जितने गोल कर सकते हैं। बस ! जरूरत एक परफेक्ट 'किक' की है। और वो किक है- जनता से जुड़ाव की। पंचायत राज चुनाव धरातल की राजनीति का खेल है और धरातल की राजनीति, कोरे आभा मण्डल से वास्ता नहीं रखती। यहां काम आता है तो जनता से वो जुड़ाव, जो उन्हें ज़मीनी नेता होने का दर्जा दिलाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मेघवाल का अपना आभामंडल उनके बेटे के लिए कितना फायदेमंद होगा या फिर "बापू ! सेहत के लिए हानिकारक है?"
कुल मिलाकर रवि शेखर को प्रत्याशी बनाया जाना अर्जुनराम मेघवाल की साख का लिटमस टेस्ट बताया जा रहा है। देखते हैं इस टेस्ट से अर्जुनराम की साख बनेगी या बट्टा लगेगा? वहीं दूसरे बड़े नेता की बात करें तो कई अब राजनीति की बजाय वैद्य की भूमिका या लोकतंत्र में विसंगतियां बताकर वाहवाही लूट रहे हैं। जनता की सुनने वाले कौन हैं ? माणिक चंद सुराणा, देवी सिंह भाटी अब जनता को उपलब्ध नहीं है। बाकी कई तो अपनी डफली, अपना राग अलाप रहे हैं। सभी नेता अपने अपने प्रधान जिताने की जुगत में हैं। भाजपा में नोखा विधायक बिहारी लाल विश्नोई की भूमिका पार्टी में उभरते नेता के रूप में है। सुमित गोदारा अपने क्षेत्र में ही राजनीति कर रहे हैं। देहात अध्यक्ष तारा चंद सारस्वत अपना कोई राजनीतिक असर नहीं दिखा पा रहे हैं। ऐसे में पंचायत चुनाव के बाद बीजेपी में नए ध्रुव बनने है, जो नई दिशा तय करेंगे।
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