हेम शर्मा, प्रधान संपादक
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10 December 2020 10:54 PM
पंचायत राज चुनावों में जहां एक तरफ बीजेपी ने पूरे राजस्थान में पटखनी दे दी वहीं बीकानेर में कांग्रेस ने बीजेपी को धूल चटा डाली. बीकानेर ने कांग्रेस और अशोक गहलोत पर भरोसा जताया है. लेकिन बीकानेर कांग्रेस में गहलोत-पायलट जैसी अंदरुनी गुटबाज़ी और खींचतान साफ तौर पर दिखाई दी. इसके चलते कांग्रेस को 9 में से 5 प्रधानों से ही संतोष करना पड़ा. जबकि 4 प्रधान की सीटों पर कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत था। वहीं 4 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी की स्थिति बराबर थी। उम्मीद यह थी कि 4 में से 3 कांग्रेस के पाले में जाएगी, लेकिन आपसी गुटबाज़ी के चलते ऐसा नहीं हो सका. बीजेपी का सिर्फ एक प्रधान की सीट लूणकरणसर में बहुमत था लेकिन प्रधान 3 सीटों पर बना लिए। उल्टा कांग्रेस ने बज्जू पंचायत समिति की 1 सीट बहुमत होने के बावजूद खोनी पड़ी। उधर कांग्रेस में प्रतिपक्ष में नेता रहे रामेश्वर डूडी और गोविन्द मेघवाल के बीच गुटबाजी ने भी कांग्रेस को नुक़सान ही पहुंचाया.
वहीं गोविन्द मेघवाल पार्टी में जीत की सारी बाधाएं पार करने के बावजूद डूडी के विरोध के चलते बेटी को जिला प्रमुख बनाने का ख्वाब पूरा नहीं कर सके. धुरंधर नेता देवी सिंह भाटी ने चुपके से ही कांग्रेस के मंत्री भंवर सिंह भाटी को सबक सिखा गए. उनके विधानसभा क्षेत्र के गढ़ में कांग्रेस की बहुमत वाली पंचायत समिति बज्जू में मंत्री को पटखनी देकर भाजपा के समर्थन से निर्दलीय प्रधान बना दिया.
कुल मिलाकर पंचायत राज चुनावों में कांग्रेसी नेताओं के बीच गुटबाज़ी का जमकर खेल खेला गया. वहीं देवी सिंह भाटी, रामेश्वर डूडी, गोविंद मेघवाल ने राजनीतिक पैंतरेबाज़ी चली. बीजेपी से पहली बार चुनाव जीते विधायक सुमित गोदारा और बिहारी विश्नोई अपने विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के प्रधान बनाने में कामयाब रहे. इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुक़सान अगर किसी को हुआ तो वो हैं- सांसद अर्जुन राम मेघवाल. पंचायत राज में बीजेपी की लहर के बीच उनका बेटा जिला परिषद सदस्य का चुनाव हार गया. खैर, उनसे भी ज्यादा अफसोस उन्हें चुनाव हराने वाले गोविन्द मेघवाल को रहा कि उनकी बेटी के जिला प्रमुख बनने की सारी सीढ़ियां चढ़ने के बाद आख़िरी सीढ़ी पर अड़चन खड़ी कर दी गई। राजनीत है ही कुछ ऐसी शै. जहां पग-पग पर शह और मात का खेल खेला जाता है. यहां जो जीता, वही सिंकदर. और जो हार गए, उन्हें अफ़सोस कहे का?
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