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30 October 2020 05:45 PM
सुमित शर्मा।
ख़बर अपडेट, नोएडा।
दुनिया के सबसे ताक़तवर देश अमेरिका में अब तक 9,120,751 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. इन्हीं आंकड़ों के साथ अमेरिका कोरोना संक्रमितों के साथ मामलों में पूरी दुनिया में पहले नंबर पर है. अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आता है- भारत का, जहां 8,040,203 लोग संक्रमित हैं। पहले और दूसरे नंबर की संख्या में कोई ज़ियादा फासला नहीं है। अमेरिका संपन्न राष्ट्र है, जैसे-तैसे संभल जाएगा लेकिन सीमित संसाधनों और गिरती अर्थव्यवस्था वाले भारत का क्या होगा? इस पर मंथन करना बेजा ज़रुरी मालूम होता है। इस कड़ी में सबसे अहम सवाल यही कि भारत में कोरोना संक्रमितों की बढ़ती तादाद की सबसे अहम वजह क्या है? आज 'मेरी बात' में हम इसी पर बात करेंगे।
जैन धर्म के आचार्य श्री तुलसी ने कहा है कि "निज पर शासन, फिर अनुशासन" मायने ये कि पहले खुद किसी बात की पालना करें फिर दूसरों को कहें। भारत में कोरोना के फैलाव पर यह बात एकदम सटीक बैठती है. कोरोना को लेकर लापरवाहियों पर लोगों का खुद पर शासन नहीं है और दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो सावधानियां रखें. देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए हम लोग सबसे पहले जिम्मेदार हैं क्योंकि हाल ही एक रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया गया था कि "जब 50 से 80 फीसदी लोग मास्क पहनते हैं, हाथों को बार-बार अच्छे से धोते रहते हैं, एक-दूसरे से 6 फीट की दूरी रखते हैं, भीड़ इकट्ठी नहीं करते हैं तो वहां कोविड-19 नियंत्रित की स्थिति में होता है।" लेकिन भारत में ज़्यादातर जगहों पर हालात इसके उलट ही हैं, तभी तो भारत दूसरे नंबर पर काबिज है. निष्कर्ष निकलता है कि 50-80 फीसदी लोग कोरोना एडवायजरी की ढंग से पालना तक नहीं करते।
हमारा खुद पर ही नियंत्रण नहीं है और हम दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो मास्क लगाएं, दूरी बनाए रखें, कोरोना एडवाइजरी की पालना करें. लेकिन फिर दूसरा भी तो ठीक वैसा ही सोचता है, जैसा आप सोचते हैं। नतीजतन जब हालात नियंत्रण के बाहर हो जाते हैं और तब हम शासन और तंत्र को कोसने लगते हैं. हां, मानते हैं कि सरकारें भी जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा नहीं उतर पाई लेकिन हम भी तो उनकी आलोचना करने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं।
सरकारें बार-बार कहती हैं कि "जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं. कोरोना एडवायजरी आदत में शुमार करें." लेकिन हम सबकी तो आदत बन चुकी है- उनकी अनदेखी करने की। अगर निष्पक्ष आकलन करें तो सरकारों और प्रशासन के स्तर पर कोरोना के प्रति जागरुकता पर सराहनीय कार्य हुआ है। व्यवस्था में नागरिकों की भी सहयोग में जिम्मेदारी बनती है। निश्चित ही व्यवस्था में कमियां औऱ खामियां रहती है। लेकिन कितना अच्छा हो कि समस्या पर नहीं, समाधान पर बात हो. खैर, हिंदी में एक शब्द है 'आत्ममंथन'. हम सबको इस शब्द के मायने समझने की ज़रुरत है. आत्ममंथन करके यह जानने की जरुरत है कि कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए हमने क्या किया? क्या हमने कोरोना एडवायजरी की ढंग से पालना की? मास्क पहनने की जरुरत समझी? वो सब बातें समझने और स्वीकारने की कोशिश की, जो कोरोना के फैलाव को रोके या फिर सिर्फ सरकार और प्रशासन को ही खरी-खोरी सुनाते, कमियां निकालते रह गए? मंथन कीजिए, फिर शायद 'निज पर शासन, फिर अनुशासन के मायने समझ भी आ जाए.
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