हेम शर्मा, प्रधान संपादक
khabarupdateofficial@gmail.com
03 May 2021 07:02 PM
बीकानेर। सुना था कि मुसीबतें आती हैं तो टूटकर आती हैं, लेकिन बीकानेर में अब ये देख भी लिया. एक तरफ शहरवासी कोरोना के ख़ौफ़ से जूझ रहे हैं, तो दूसरी तरफ इस प्रचंड गर्मी में पानी की किल्लत परेशान कर रही है. आलम यह है कि न पीने को पानी है और न रोटी बनाने को. दरअसल बीकानेर में पेय जलापूर्ति का ज़रिया इंदिरा गांधी नहर है. फिलवक़्त नहरबंदी चल रही है, ऐसे में शहर में एक दिन छोड़कर एक दिन जल की आपूर्ति हो रही है. वो भी इतनी धीमे कि दिनभर में 2 बड़ी मटकियां भी न भर पाएं. बेचारी जनता गिला-शिकवा करें भी तो किससे? अधिकारी सुनते नहीं, समस्या सुलझती और पानी मिलता नहीं.
पीएचईडी के अफसर, ख़ुद को नेताओं के इर्द-गिर्द सुरक्षित समझते हैं. वो जनता की समस्याओं को लटकाए रखने में सिद्धहस्त हैं. पीएचईडी के एक अधीक्षण अभियंता जब सूबे में बीजेपी की सरकार थी, तब बीजेपी नेताओं के यहां डेरा डाले रहते थे. तब जनता को आश्वासनों का झुनझुना और उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट्स देकर उन्होंने पूरा कार्यकाल निकाल दिया. और अब भी मंत्री और उनके इर्द-गिर्द के नेताओं की छत्रछाया में वैसा ही खेला कर रहे हैं. कॉकस ऐसा कि मंत्री को ज़मीनी हकीकत की हवा ही नहीं लगने दे रहे हैं. इस बात का ख़ास ख़याल रखा जाता है कि मंत्री के सामने अपनी साख कैसे बरकरार रहे, ध्यान नहीं रखा जाता तो जनता की समस्याओं का. बेशक, हकीकत का इल्म ख़ुद मंत्रीजी को भी होगा? और अगर नहीं जानते तो जानना चाहिए कि आख़िर क्यों आपके गृह ज़िले और विधानसभा क्षेत्र में ठेकेदार तय शर्तों पर काम क्यों नहीं कर रहे हैं. एक बारगी जांच करवा लीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी. वैसे भी सच कहां छिपता है.
बहरहाल, अफसरों की इस कारस्तानी के चलते जनता गेहूं में घुन की तरफ पिस रही है. पिस क्या रही है, वैशाख के महीने पानी को तरस रही है. वैसे प्यासे को पानी पिलाना तो हमारी संस्कृति का भी हिस्सा रहा है लेकिन मोल लेकर भी हक का पानी नहीं देना, कहां का न्याय है भला? जनता प्यासी रह लेगी लेकिन एक बात बताइये कि क्या आपका 'पानी' उतर गया है? रहीमदास जी का वो दोहा नहीं सुना क्या?
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून।।
RELATED ARTICLES
18 August 2022 10:45 AM
12 August 2022 04:20 PM
08 August 2022 05:27 PM
05 August 2022 10:45 AM