हेम शर्मा, प्रधान संपादक
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02 December 2020 09:55 AM
स्वास्थ्य मंत्री जी !
भगवान आपको शीघ्र स्वस्थ करें। आप जल्द ही कोरोना निगेटिव होकर स्वास्थ्य लाभ लें। हर सरकारी अस्पताल में कोरोना पीड़ित मरीज़ के लिए ईश्वर से यही प्रार्थना है क्योंकि अस्पतालों और चिकित्सा व्यवस्था की दूसरी तस्वीर उद्दिग्नता से भरी है। जयपुर के ही मेरे एक डॉक्टर मित्र का कहना है कि
राजस्थान सरकार सूझ-बूझ से कोरोना संकट का मुक़ाबला कर रही है। इसका प्रमाण ख़ुद देश के प्रधानमंत्री भी दे चुके हैं। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में रघु शर्मा ने भी प्रदेश की जनता के लिए अच्छा काम किया है। कमियां या खामियां तो व्यवस्था का हिस्सा है। इसमें सुधार करते रहना पड़ता है।
जयपुर के ही मेरे एक पत्रकार मित्र बाबूलाल बताते हैं कि
स्वास्थ्य मंत्री ने जयपुर स्थित जिस कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल का निरीक्षण किया, पूरे प्रदेश में उसकी दो तस्वीरें दिखाई जाती हैं। व्यवस्थाओं के जिम्मेदार लोगों की ओर से दिखाई जाने वाली तस्वीर और वास्तविक तस्वीर में फर्क स्पष्ट है। यह व्यवस्था का सच है। कमियां तो हैं ही। उन्हें छिपाया भी जाता है। ये बात ख़ुद मंत्री भी जानते हैं।
बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में भर्ती रहे मेरे मित्र जे. पी. व्यास ने बताया कि
सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे कर लें लेकिन असल में कोविड मरीज़ भगवान भरोसे ही रहता है। उनका इलाज रेजिडेंट डॉक्टर्स के भरोसे ही होता हैं। कोई प्रोफेसर रोगियों की देखभाल करने कितना आता है, ये जानना हो तो रिकार्ड चेक कर लिया जाए। आलम तो यह है कि सीनियर डॉक्टर्स आते ही नहीं। सरकार ने उनको जो किट दे रखी हैं, उस किट की आड़ में वार्ड ब्वॉय या रेजिडेंट ही पहुंचते हैं। गर्म पानी, बाथरूम, शौचालय और वार्ड की सफाई, वार्ड ब्वाय, नर्सिंग स्टाफ की भूमिका सन्तोषजनक नहीं है। डॉक्टर तो कोई बात बोलने पर धमकाते हैं।
आह ! कितनी तकलीफदेह बात है कि कोविड मरीज़ जे.पी. व्यास के साथ रेजिडेंट डॉक्टर ने दुर्व्यवहार किया। ज्यादा कहा तो परेशानी की हालत में उनको अस्पताल से छुट्टी दे दी। मजबूरन उन्हें घर पर ही इलाज करवाना पड़ा। ये वो स्याह यथार्थ है, जो ख़ुद जे पी व्यास ने भोगा है।
पिछले सप्ताह भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत आईएएस सुधीर भार्गव के भांजे की कोविड से पीबीएम अस्पताल में म्रत्यु हो गई। डॉ. बी. जी. भार्गव ने एस. पी. मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की है, वो पीबीएम में डिप्टी सुपरिटेंडेंट भी रहे हैं. उनका कहना है कि
बड़े अफ़सोस की बात है कि डॉक्टर मेडिकल एथिक्स की पालना तक नहीं करते। न तो सीनियर डॉक्टर्स राउंड पर आते हैं और न ही मरीजों को इलाज की जानकारी दी जाती है। कोई इलाज के बारे में पूछता है तो जवाब मिलता है कि कोई इलाज नहीं है। मरीजों को न तो WHO की गाइडलाइन से दवाएं दी जाती है और न ही प्रोपर देखभाल की जाती है। बीकानेर संभाग का पीबीएम अस्पताल खुद बीमार पड़ा है।
और तो और यह भी पुख्ता ख़बर है कि बेहतर व्यवस्था के लिए कलक्टर नमित मेहता ने ड्यूटी का जो रोस्टर लागू किया है, निरीक्षण में वो भी पुख्ता नहीं पाया गया। कलक्टर को खुद कोविड अस्पताल में निरीक्षण करने जाना पड़ा। सवाल उठता है कि आखिर क्यों कलक्टर को निरीक्षण करने की जरुरत आन पड़ी? क्यों ये सरकारी अस्पताल इतना बदनाम होता जा रहा है? क्या किसी के पास कोई जवाब है? मंत्री जी ! इन समाचारों का सच आप जानते ही हैं। फिर क्यों देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस राजस्थान की तारीफ़ करते हैं, जनता उसकी व्यवस्था से इतनी परेशां क्यों हैं? क्यों इन दोनों फ्रेम्स में एक तसवीर नहीं है?
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