एक शख़्स जिसे अपनी नज़्मों में कहानी पिरोने का हुनर आता है. वो फिल्म बनाता है तो लगता है कोई ख़ूबसूरत सी लम्बी कविता, अपने आगोश में चित्र और उनकी आवाज़ों को बांधकर बह रही है. वो नज़्म लिखता है तो लगता है कि गर्म सेहरा को शादाब करने कोई दरिया,अपने हृदय को जलाकर, लोगों को शीतलता दे रहा है. सिनेमा और साहित्य को अपना खुदरंग लहजा देने वाले इस सफेद पैरहन वाले संत का नाम 'गुलज़ार' है. इन लम्बे कठिन दिनों में मैंने गुलज़ार साब की बहुत सी फिल्म देखीं. जिनमें मेरे दरक रहे हौसलों और कच्चे कच्चे मन को बेहतर कल की कल्पना में पकाकर मजबूत कर दिया. इसी बीच मेरे हाथ एक किताब लगी जिसके कदमों के पास गुलज़ार और दिल पर, 'A poem a day' लिखा था. गुलज़ार और पोयम दोनों एक दूसरे के पूरक है, गुलज़ार साब को गौर से देखें तो जीती-जागती शाइस्ता, पुरखुलूस कविता दिखाई देती है और पोयम को जिस्म दिया जाये तो कम-अज-कम उसका दिल हूबहू गुलज़ार जैसा होगा.
*किताब के हर वरक पर नयी कविता थी, लिखने वाले हिंदुस्तान के मुख्तलिफ शहरों के कवि, दूसरे मुल्को जैसे- बांग्लादेश, श्रीलंका,नेपाल, पाकिस्तान के कवि/शायर थे. हर एक पेज, हर वरक एक पूरी दास्तां कह रहा था. ये किताब 1947 से आज तक का ऐसा दस्तावेज़ है जिसमें हर दौर की खलिश,मोहब्बतें,तकलीफें, नाउम्मीदें, हौसले और बेहतर भविष्य के मानवीय गुज़ारिश है. किताब पढ़ने के बाद लगता है कि आज़ादी के बाद के हर हालात को कोई सुरीला गवैया या बाउल गायक, अपनी टेर में गा रहा है. गुलज़ार साब ने ख़ुद एक-एक कविता का चयन किया है. हिंदुस्तान और पड़ोसी देश के 249 कवियों की लिरिकल क़िस्सागोई की हर एक नज़्म, बेहद ख़ूबसूरत है. कमाल ये भी है कि नज़्में/ कवितायें महज़ हिंदी या उर्दू में न होकर बल्कि 34 अलग-अलग ज़बानो में है. हर ज़बान की अपनी तासीर और आंच है लेकिन गुलज़ार साब ने हर नज़्म की रूह को अपनी सफ्फाक उंगलियों से सहलाकर उसका तर्ज़ुमा इंग्लिश में किया है. हुनर ये है कि ट्रांसलेशन के बाद भी कविताओं की मूल ठसक, रूह और अलंकार गुम नहीं हुए बल्कि उनकी हर परत ज़्यादा रूहदार और नुमाया हो रही है. ये ऐसा लगता है जैसे किसी पुरानी खूबसूरत हवेली को इतनी हुनरमंदी से रंग रोग़न किया हो कि उसका एंटीक फील भी बचा रहे और उसकी ख़ूबसूरती में निखार भी आ जाए. गुलज़ार साब ने सभी कविताओं को ऐसे ज़बान यानी अंग्रेजी में में हाज़िर किया, जिसे आज ज़्यादातर लोग समझते हैं और इस ज़बान ने हर देश और प्रांतो के बीच की सरहद को तोड़कर ख़ुद को स्थापित कर लिया है.
*हाइपरकोलिंस द्वारा पब्लिश की गयी ये किताब इस साल का मेरा हासिल रही. किसी एक किताब में इतने मुख्तलिफ रंग, ख़ुशबू, अंदाज़, लहजा, आक्रोश, दर्द और इश्क़ की शीरी दास्तानगोई शायद ही कभी देखने को मिले. हर कविता अपने मूल कवि के होने के बावजूद कुछ-कुछ गुलज़ार जैसी है. हर कविता की रूह में आपको गुलज़ार की विसुअल इमेजरी भी दिखेगी. कविता में सिनेमा का लुत्फ़ लेना हो तो ये किताब एक ज़रूरी दस्तावेज़ है.
लेखक जाने-माने फिल्ममेकर, स्क्रीन राइटर और लिरिसिस्ट हैं.