गुज़िश्ता ज़िन्दगी, बचपन के तरलता भरे दिन, उनसे जुड़ी घटनायें और लोग, उम्र के हर पड़ाव पर आपके क़दम थाम लेते हैं. 1986 मेरे लिए इन मामलो में ख़ास रहा। ज़ेहन की तलहटी में ये साल बैठा हुआ है. ज़रा सी हलचल हुई और ये साल तैरता हुआ मेरे जज़्बात के साथ ऊपरी सतह पर, पुरज़ोर तरह से काबिज़ हो जाता है. इस साल की गर्मियों में अपने पसंदीदा फल आम से भी ज़्यादा मैंने फुटबाल विश्वकप का इंतज़ार किया था। माराडोना ने मेरे ऊपर जादू किया, लेकिन साल बीतते-बीतते रात के दूरदर्शन की एक लाइन, मेरे पूरे साल के हासिल को छीनती सी लगी. ये स्मिता पाटिल की मौत की खबर थी. हालांकि स्मिता की कुल जमा 2 फिल्म 'शक्ति' और 'नमक हलाल' देखी थी लेकिन स्याह रंग की कशिश, बड़ी आँखों से बात करने की अदा और लफ्ज़ों की कंजूसी के बावजूद सब बयान करने का हुनर, असर कर गया था. उस उम्र में न अभिनय की गहराई का पता, न ही पैरेलल सिनेमा के सबसे भाव प्रवण चेहरे से कोई आशनाई थी लेकिन स्मिता इन दो फिल्मों से मेरे बालमन में कई परतों के नीचे, स्थायी जगह बना चुकी थी. 13 दिसंबर 1986 को भारतीय सिनेमा का सबसे शालीन चेहरा, अपनी ज़िन्दगी, अपने बच्चे प्रतीक में डाल, आसमान के घने अंधेरों में चली गया।
*स्मिता ,पुणे के प्रभावशाली सामाजिक और राजनैतिक परिवार में जन्मी थीं. माँ-बाप दोनों सामाजिक कामो में अपनी देह जलाते थे और यही से स्मिता को समाज की हर परत पर निगाह डालने की आदत सी हो गयी. अपने ही शहर पुणे में कैमरे के सामने पल-पल में नए किरदार ओढ़ने का हुनर सीखा ही था कि दूरदर्शन ने स्मिता को न्यूज़ रीडर बनने का मौका दे दिया. स्मिता के सौम्य-सलोने चेहरे में एक ठहराव था लेकिन बड़ी गहरी आँख में एक आग भी. यही कंट्रास्ट मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल को भा गया और स्मिता के गोद में कई फिल्म, एक साथ आ गईं. समाज और उसके हाशिये पर धकेली गयी औरत, स्मिता के आँखों के ठीक बीच में हर वक़्त केंद्रित रहती. इत्तेफ़ाक़ से श्याम बाबू भी अपनी फिल्मो में कुछ ऐसे ही किरदार गढ़ रहे थे जिनकी हलकों से आवाज़ छीन ली गयी थी. अपनी पहली फिल्म 'चरणदास चोर' में एक राजकुमारी के किरदार में स्मिता ने गहरा प्रभाव दिखाया. मुख्यतः ईमानदार और सच्चे चोर 'चरणदास पर आधारित ' जिसकी कहानी को मशहूर लेखक 'विजयदान देथा' उर्फ़ बिज्जी ने राजस्थान के धोरों के इर्द-गिर्द गढ़ी थी, में स्मिता ने कम गुंजाइश के बावजूद अपनी आमद के बारे में बताया. मंथन में एक परित्यक्ता पत्नी जो अकेले होने के बाद भी अबला नहीं है, जो औरत को ख़ामोशी से सहने का पर्याय नहीं मानती बल्कि जिसकी अपनी बुलंद अव्वाज़ है. वर्गीज़ कुरियन और देश में दूध क्रांति पर आधारित इस फिल्म में स्मिता कई दृश्य में अपनी महीन अभिनय बुनावट से बाते कहते दिखती हैं.
*सिनेमा की आर्क लाइट की मद्धम आंच में धीरे-धीरे पकते स्मिता 'भूमिका' फिल्म तक पहुँचती है जिसने स्मिता को नयी ऊंचाई दी. मशहूर स्टेज डांसर और अभिनेत्री, 'हंसा वाडकर ' की ज़िन्दगी की परतों को खंगालती इस फिल्म में स्मिता ने अपना सीखा और भोगा हर सच उड़ेल दिया. उम्र दराज़ लालची पति की जलन और अपनी पत्नी के दलाल की तरह, उसके काम को संभालते अमोल पालेकर के सामने हंसा बनी ,स्मिता बेहद कद्दावर दिखती है. इस फिल्म ने स्मिता के गले में राष्ट्रीय पुरस्कार का तमगा डाल दिया. 'आक्रोश में अत्याचार सहते और खामोश ओम पुरी की पत्नी की भूमिका में स्मिता ने दर्द को एक नयी जुबां दे दी. दुष्कर्म का दंश झेलती स्मिता, हताशा, कष्ट और अपमान से आत्महत्या कर लेती है और उसकी चिता को आग देते ॐ की सालो की धधकती ज्वाला भड़क उठती है
*70 और 80 के दशक के समानांतर सिनेमा के दो चेहरे, स्मिता और शबाना अपने उरूज़ पर होते है और लोकप्रिय सिनेमा बनाने वाले कॉमर्शियल निर्देशक इन टैलेंट पावर हाउस को अपने गढ़े किरदार में लाने की कोशिश करते हैं. 1982 में स्मिता ने, परदे को अपने कद्दावर शख्सियत से जला रहे अमिताभ के साथ दो मुख्यधारा की फिल्में कीं. 'नमकहलाल' में पानी में भीगते हुए 'आज रपट जाए' गाने पर अमिताभ के साथ ठेले पर लेटे हुए रोमांस का दृश्य ,भारतीय सिनेमा के चंद सबसे सेंसुअस दृश्यों में से एक है. सांवली काया, पानी की बूंदो से ऐसे दहक उठती है कि उसकी गुनगुनी आंच दर्शकों को अपनी सीट पर महसूस होती है. एक नॉन ग्लैमरस अभिनेत्री का किसी किरदार में तोला-तोला नापकर डाले गए नमक का ये बेहतरीन उदहारण था. इसी साल आयी फिल्म 'शक्ति' में विद्रोही अमिताभ के गुस्से को थामती और उसकी ज़िन्दगी की हलचल में शांत झील सी ठहराव लाने वाली स्मिता, मुख्तलिफ रंग में नज़र आती है. शक्ति ,अमिताभ के बाप के प्रति गुस्से , दिलीप कुमार के कर्तव्यपरायण पुलिस अफसर के साथ , स्मिता के अद्भुत संतुलन वाली महिला के किरदार की फिल्म है.
*अर्थ' ने स्मिता और शबाना को रूबरू ला खड़ा किया. बरसो से उनकी कथित राइवलरी को, इस लेयर्ड फिल्म ने और हवा दे दी. शादी शुदा शबाना और कुलभूषण खरबंदा की ज़िन्दगी में , दूसरी औरत बन कर आयी स्मिता, प्यार की तड़प और किसी की ज़िन्दगी तबाह करने पश्चाताप में परत दर परत उधड़ती रहती है. प्यार, जलन ,उपेक्षा, आत्म्ग्लानि में बिखरते रिश्तो की नाज़ुक सिलाई की हर तह को स्मिता की बारीक बयानगी ने कोमल और खूबसूरत बना दिया.
*महज़ 31 साल की उम्र में स्मिता ने वो मक़ाम हासिल कर लिया जिसके लिए कई ख्वाहिशमंदों की कई ज़िंदगिया क़ुर्बान हो जाती है. कहते है अपार टैलेंट, जवां मरगी का शिकार होता है. राजबब्बर की दूसरी पत्नी की आत्मग्लानि और एक अदद बच्चे की माँ कहलाने की ख्वाहिश के बीच झूलती स्मिता ने १३ दिसंबर को नादिरा बब्बर से माफ़ी मांगते इस रिश्ते और दुनिया , दोनों से इस्तीफ़ा दे दिया समानांतर और कामर्शियल , दोनों स्पेस को इतनी खूबसूरती और सौम्यता से निभाने वाली कोई दूसरी अदाकारा , फिर इस धरती पर आएगी, इसकी उम्मीद तो है लेकिन भरोसा बेहद कम.